बुधिया और नत्था की जोड़ी हो सकता है आगे चलकर कोई समीकरण बनाए। पाठक-दर्शक दोनों ही किरदारों को पीपली लाइव के माध्यम से जानते हैं। बुधिया, रघुवीर यादव हैं और नत्था, ओंकारदास मानिकपुरी। ओंकारदास मानिकपुरी के बारे में यह सभी को पता है कि वे हबीब तनवीर साहब के ग्रुप में बहुत बाद में एक जूनियर आर्टिस्ट के रूप में जुड़े। आगरा बाजार में भी उनको छोटी भूमिका ही मिली। दरअसल वे और उनकी ही तरह के कुछ कलाकार उस वक्त नया थिएटर में शामिल हुए थे जब एकदम से इस संस्था से वरिष्ठ और असाधारण क्षमताओं वाले कलाकार विभिन्न कारणों से रुखसत हो गये थे। दीपक तिवारी, पूनम तिवारी, गोविन्द निर्मलकर आदि काम नहीं कर रहे थे। भुलवाराम यादव बेहद बीमार हो गये थे, बाद में उनका देहान्त भी हो गया।
नया थिएटर के ऐसे कठिन वक्त में ओंकारदास का कुछ ही समय काम करना फिर चरणदास चोर नाटक में चरणदास चोर के किरदार के निबाह के लिए कलाकार का संकट, ऐसे में ही ओंकारदास, का चयन अनुषा रिजवी ने पीपली लाइव के लिए किया। पीपली लाइव से जुड़ते हुए ही ओंकारदास, चरणदास चोर भी बनने लगे। एक बड़े सीधे-सच्चे और लो-प्रोफाइल कलाकार का यह उद्भव कालान्तर में फिल्म की चर्चा और सफलता के साथ एक बड़े कैनवास में जिस तरह व्यापक हुआ, उसका किस्सा हम सभी को याद है। रघुवीर यादव ने इस फिल्म में नत्था के बड़े भाई बुधिया की भूमिका की थी। यादव, फिल्म का मूल थे मगर सारे सीन, सारी लोकप्रियता नत्था के खाते चली गयी। अनुषा और आमिर भी ओंकारदास के साथ ही देश-दुनिया में फिल्म का प्रमोशन करते रहे।
हिन्दी सिनेमा में दो दशक से भी ज्यादा समय से मैसी साहब जैसी ख्यातिप्राप्त फिल्म के माध्यम से अपनी क्षमता दिखलाने वाले रघुवीर ने मुंगेरीलाल की तरह ही सपने देखे हैं। वे स्वयं एक लो-प्रोफाइल कलाकार रहे हैं मगर अपने किरदारों को जीने में वे पंकज कपूर की तरह ही जी-जान एक कर दिया करते हैं। आमिर खान की लगान से वे उनके परिवार का हिस्सा बने। उनकी निष्ठा भी आमिर खान के प्रति खूब प्रकट होती है तभी वे कुछ दिन पहले दिल्ली में आमिर खान का पक्ष लेते हुए अनुषा रिजवी की लम्बी आलोचना करने से भी नहीं चूके थे। यह खबर राष्ट्रीय अखबारों में भी प्रकाशित हुई थी। रघुवीर यादव और ओंकारदास मानिकपुरी की पहली पीपली लाइव सहभागिता और उससे उपजी लोकप्रियता का लाभ लेते हुए छत्तीसगढ़ में एक फिल्म और दोनों कलाकारों को लेकर बन रही है।
अभी रघुवीर यादव की नैया मझधार में है। हो सकता है अपने पीपली भाई नत्था के साथ ही बुधिया भी अपनी नाव को आगे खेने में सफल हो जाएँ। खाँटी कलाकारों का संघर्ष उत्कृष्टता के बावजूद कभी खत्म नहीं होता। यादव का जिक्र भी इसीलिए इसी के आसपास ही होता है।
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