भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन प्रशिक्षण संस्थान, पुणे ने पिछले तीन सालों में नये आयामों के साथ विस्तार लिया है। संस्थाओं को समृद्ध बनाना, उनकी सक्रियता की स्थितियों को आज के पैमाने और धरातल पर देखकर नवाचार करना और विशेषकर पीढिय़ों की सहभागिता उनके अपने मानस और दृष्टि के अनुकूल बनाकर सुनिश्चित करना एक अलग तरह का काम है। संस्थान के निदेशक पंकज राग ने इन वर्षों में वहाँ जिस प्रकार की उदारता और सम्भावना की जरूरत समझी, उसके अनुकूल उपक्रम किए, उनके परिणाम आज भी दिखायी देते हैं और दो वर्ष बाद भी दिखायी देंगे जब भारतीय सिनेमा की शताब्दी मनायी जा रही होगी।
पंकज राग, एक परिकल्पना, एक मिशन लेकर संस्थान में निदेशक बतौर गये थे। सिनेमा के प्रति उनकी अपनी रुचियाँ हैं, खासकर सिने-संगीत के क्षेत्र में धुनों की यात्रा जैसी दुर्लभ और अकेली ऐसी किताब उन्होंने लिखी है, जिसमें खासकर संगीतकारों की काल-सम्मत सक्रियता, कथ्य और परिवेश के अनुरूप गीत की संगीतबद्धता और उनके सृजनात्मक मानस का गहरा विवेचन है। पंकज राग, भारतीय प्रशासनिक सेवा के, मध्यप्रदेश काडर में, सचिव स्तर के अधिकारी हैं। भारत सरकार को निदेशक के रूप में सौंपी गयी सेवाओं की अवधि फरवरी माह में पूरी हो रही है, इसी बीच भोपाल में इस स्तम्भ के लिए उनसे अनौपचारिक बातचीत हुई जिसमें उन्होंने बताया कि कई सारे कामों की शुरूआत इस बीच हुई और कई रुके काम फिर आरम्भ हुए जिनमें खासतौर पर अभिनय के कोर्स का शुरू होना एक बड़ी उपलब्धि है।
वे कहते हैं कि अधिकतर प्रशिक्षु अपने लिए प्रथमत: अभिनय, फिर निर्देशन का पाठ्यक्रम चुनते हैं, सम्पादन, ध्वन्याँकन, कला निर्देशन की तरफ लोगों का रुझान कम रहता है लेकिन पिछले तीनों पाठ्यक्रमों में लोग आये। वे लेंससाइट पत्रिका के पुनप्र्रकाशन, विशेषकर उसका हिन्दी-अंग्रेजी भाषाओं में प्रकाशन, चार अंकों का प्रकाशित होना और उसकी लम्बे समय से बन्द होने के भी पहले की रूढ़ पहचान को भी बदलने का काम संस्थान ने किया। संस्थान में अब होस्टल को लेकर समस्या नहीं रही क्योंकि एक नया बड़ा होस्टल सबसे पहले बनाने का काम किया गया। बन्द पड़े प्रभात म्युजियम को भी अच्छे स्वरूप में लाकर उसका लोकार्पण किया गया। पंकज राग की पहल पर ही फिल्म आर्काइव के साथ एप्रीसिएशन कोर्स दूसरे शहरों में भी आयोजित हुए। संस्थान के प्रशिक्षुओं द्वारा बनायी गयी फिल्मों को मिलने वाले नेशनल अवार्डों की संख्या में इजाफा हुआ।
निदेशक ने संवाद और संगोष्ठियों का एक सिलसिला आरम्भ किया जिसमें साहित्य और सिनेमा से लेकर शैलेन्द्र तक पर केन्द्रित आयोजन हुए। बंगला देश की फिल्मों के समारोह के साथ-साथ, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का फिल्म प्रशिक्षणार्थियों के द्वारा बनायी गयी फिल्मों का समारोह भी बड़ी पहल थी। पंकज राग मानते हैं कि किसी भी क्षण यह मानना उचित नहीं है कि काम बहुत हो गया या सब कुछ हो गया क्योंकि गुंजाइश बराबर बनी रहती है। अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। संस्थान का स्वर्ण जयन्ती वर्ष समारोह सम्पन्न हुआ है और सिनेमा की शताब्दी की बेला है। दो-एक बड़े प्रकल्प यदि मंजूर हो गये तो आने वाले संस्थान एक बड़ी भूमिका निबाहेगा।
1 टिप्पणी:
पंकज राग का एक कविता संग्रह भी पुरस्कृत हुआ है अभी हाल में. उन्होंने फ़िल्मों के ऊपर एक शोध-ग्रंथ भी लिखा है. उन्हें बधाई!
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