शनिवार, 11 दिसंबर 2010

अभिव्यक्ति के सर्वोच्च शिखर दिलीप कुमार

दिसम्बर का महीना जिन महत्वपूर्ण सितारों के जन्मदिन का होता है उनमें दिलीप कुमार साहब का नाम सर्वोपरि है। 11 दिसम्बर उनका जन्मदिन है। उम्र और शारीरिक अस्वस्थता के कारण उनका अब बाहर कम आना होता है लेकिन फिल्म जगत में उनका इतना आदर और मान-सम्मान है कि संजीदा और कृतज्ञ लोग वक्त-वक्त पर उनकी कुशलक्षेम पूछने उनके घर जाते हैं। कुछ भी नया या अच्छा कर रहे होते हैं तो उनको जाकर बताते हैं और उनकी शुभकामनाएँ प्राप्त करते हैं। फिल्म इण्डस्ट्री में आज का समय कृतघ्र स्पर्धा और एक-दूसरे को दमित करते रहने वाले प्रतिद्वन्द्विता का है। शुक्र है दिलीप साहब अपने समय की उस पीढ़ी के महान कलाकार हैं जहाँ एक दूसरे से इस स्तर की प्रतिद्वन्द्विता नहीं हुआ करती थी।

दिलीप कुमार अपने समय की तीन शीर्ष सितारों की त्रयी में सबसे पहले शुमार होने वाले महानायक माने जाते थे, उनके बाद राजकपूर और देवआनंद का नाम लिया जाता था लेकिन हमेशा ही तीनों में बड़ी गजब की समझ रही है। यह उल्लेखनीय है कि तीनों ही अपने-अपने जगत के श्रेष्ठ व्यक्तित्व थे मगर तीनों में कभी टकराहट नहीं हुई। कुछेक ऐसे अवसर हैं जहाँ इन्हें परस्पर एक साथ काम करते हमने कुछ फिल्मों में देखा है मगर ऐसा कभी सुनने में नहीं आया कि कोई किसी के लिए बयान दे रहा है या हँसी उड़ा रहा है या कोई किसी के रोल पर कैंची चलवा रहा है।

हिन्दी सिनेमा का यह अतीत बड़ा सुखद है जहाँ एक वक्त में अनमोल सितारे सिनेमा के आसमान पर हुए। सभी की सहभागिता से अपने समय का सबसे अच्छा, कालजयी और यादगार सिनेमा बना और दो साल बाद जब सिनेमा की शताब्दी मनायी जा रही होगी तो इस स्वर्णयुग को स्वर्णाक्षरों में लिखा भी जायेगा। दिलीप कुमार शिक्षा और परिवेश में समृद्ध वातावरण में परवरिश पाये युवा नहीं थे लेकिन अपने असाधारण अभिनय, अपने व्यवहार और अपनी प्रतिभा से उन्होंने सभी को अपना प्रिय बनाया।

उन्होंने अपने समय के श्रेष्ठ निर्देशकों के साथ लगातार काम किया है जिसमें हम बिमल राय, मेहबूब खान, बी.आर.चोपड़ा के नाम ले सकते हैं। उन्होंने मुगले आजम, आन, अमर, देवदास, मधुमति, मुसाफिर, गंगा जमना, लीडर, अन्दाज, इन्सानियत, कोहिनूर, नया दौर, राम और श्याम, संघर्ष आदि ऐसी फिल्मों में काम किया जो मील का पत्थर हैं।

गायक स्वर्गीय मोहम्मद रफी, संगीतकार स्वर्गीय नौशाद के साथ उनके अभिनय से सजी ऐसी अनेकानेक फिल्में होंगी जिन्हें हम केवल उनके लिए ही याद करते हैं। संघर्ष, लीडर, सगीना में उनके किरदार साहसिक हैं। उनकी फिल्मों में उन पर फिल्माए भजन आज भी लोकप्रिय हैं। उन्होंने अपनी निरन्तरता का लम्बा समय हिन्दी सिनेमा को दिया है। शक्ति, मशाल, दुनिया, विधाता से सौदागर तक यह यात्रा बखूबी आयी है।

जिस तरह प्राण जैसे कलाकार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से अब तक वंचित हैं उसी तरह दिलीप कुमार भी एक बड़े शीर्ष सम्मान से वंचित हैं। ये उस दौर की पीढ़ी है जो अपने सम्मान के लिए चक्कर लगाने या गिड़गिड़ाने में विश्वास नहीं करती। हमारे मन में इनके अवदान के प्रति नत-मस्तक होने का भाव है तो हमको ही पहल करनी होगी।

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