रविवार, एक यादगार फिल्म के पुनरावलोकन के सिलसिले में ए.आर. कारदार की फिल्म बाप रे बाप का जिक्र प्रासंगिक लगता है। इस फिल्म का प्रदर्शनकाल 1955 का है। 1904 में जन्मे कारदार का फिल्म कैरियर सन 29 से आरम्भ हुआ हुस्न का डाकू फिल्म से जिसमें उन्होंने अभिनय भी किया था और 75 में उनकी अन्तिम फिल्म मेरे सरताज आयी थी। पेंटर और फोटोग्राफर से अभिनय और निर्देशन तक की असाधारण यात्रा करने वाले कारदार साहब ने दास्तान और दिल दिया दर्द लिया जैसी यादगार फिल्म भी निर्देशित की थी।
बाप रे बाप, एक हास्य फिल्म है, पूरी तरह किशोर कुमार के रंग में रंगी हुई। एक रईस पिता की लाड़ली और इकलौती सन्तान है जिसको छींक भी आ जाती है तो पिता डॉक्टर, वैद्य, ज्योतिषी और तांत्रिक का इन्तजाम एक साथ, एक ही वक्त पर करता है। बेटा, खिलन्दड़ है, रईसी से उसका कोई वास्ता नहीं। एक दिन वह एक सौम्य और सुन्दर युवती को गाना गाते हुए देखता है तो उस पर मोहित हो जाता है। युवती गरीब है और उसके महलनुमा घर में रोज ताजे फूल लाकर सजाया करती है। निश्छल और सरल इस युवक से उसको भी प्यार हो जाता है मगर अमीर माँ-बाप और अमीरी से वह भी डरती है। रईस पिता के मन में अपने बेटे की शादी का ख्याल आता है। इश्तहार देकर प्रस्ताव मँगवाये जाते हैं। पिता कुछ तस्वीरें छाँटता है और अपने विश्वस्त साले को, उन सात-आठ जगहों पर भेजता है जहाँ के प्रस्ताव उसे पसन्द आये हैं। नायक, अपने मामा को समझाकर साथ हो लेता है। वह भेस बदलकर हर घर में जाता है और लौटकर पिता को सभी प्रस्ताव निरस्त किए जाने की सिफारिश की जाती है।
फिल्म का दिलचस्प पहलू यह है कि पिता कहीं न कहीं सशंकित हो जाता है और उन सातों युवतियों को उनके माता-पिता के संग अपने यहाँ निमंत्रित करता है ताकि खुद निर्णय ले सके। घर में फिर बेटा ऐसी खुराफात करता है कि सभी में सिर-फुटौव्वल हो जाती है, लिहाजा सभी चोट खाये, घायल लौट जाते हैं। पिता का एक रिटायर्ड फौजी मित्र भी अपनी सनकी बेटी की शादी रईस के बेटे से करना चाहता है, स्थितियाँ गड्डमड्ड होती हैं। गरीब नायिका का दिल कई बार टूटता है मगर आखिरकार चतुर बेटा हास्यपरक परिस्थितियों के बीच अपने इरादों में सफल होता है।
बाप रे बाप फिल्म की खूबी उसका अत्यन्त सहज और आसान गति में उपसंहार तक पहुँचना है। कहानी जिस तरह की है, सभी कलाकारों ने अपनी अभिनय क्षमता, खासकर कॉमेडी सेंस के माध्यम से दृश्य सँवारने में अनूठा योगदान किया है। किशोर कुमार तो हरफनमौला हैं ही, पिता के रूप में जयन्त, मारुति, उल्हास, स्मृति बिस्वास ने बहुत अच्छी तरह भूमिकाएँ निभायी हैं। जाँ निसार अख्तर के गीत और ओ.पी. नैयर का संगीत मोहक है, रात रंगीली चमके तारे, आजा सजनवा प्रेम-दुआरे, पिया पिया पिया मोरा जिया पुकारे, गाने बड़े मीठे हैं।
दिलचस्प और उल्लेखनीय यह भी है कि क्लायमेक्स में आशा भोसले का गाया एक गाना इस फिल्म में किशोर कुमार पर फिल्माया गया है।
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