रविवार, 26 दिसंबर 2010

सलमान रहे मैदान में आगे

एक पिता के लिए अपने बेटे के बारे में बहुत ज्यादा तारीफें करना ठीक नहीं होता। खुशी तो तब है जब लोग तारीफ करें। पिता को उस वक्त ज्यादा खुशी होती है और होनी चाहिए जब उसके बच्चों की सराहना दूसरों द्वारा की जाए, जाहिर है, इसके लिए उस तरह के काम भी करना होते हैं। इस साल की सबसे बड़ी सफल फिल्म के सितारे प्रख्यात कलाकार सलमान के पिता और मशहूर लेखक, पटकथाकार, संवाद लेखक सलीम खान, खास पत्रिका को अपने बेटे के जन्मदिन के मौके पर अपने भीतर की यह बात बतलाते हैं। प्रसंग, 27 दिसम्बर के सन्दर्भ में बातचीत का था, सलमान खान के जन्मदिन का।

सलमान इस दौर में, परिपक्व उम्र की संजीदगी, संवेदनशीलता और हातिमताई की तरह अपने स्वभाव के कारण दर्शकों में अलग ही जाने जाते हैं। परदे पर उनकी उपस्थिति सिनेमाहॉल में बेसाख्ता तालियों का सबब होती हैं। सीटियाँ बजना शुरू होती हैं, तो रुकती नहीं। आज की स्थिति बड़े वक्त बाद आयी है, बहुत सारे अनुभव, उतार-चढ़ाव और फलसफों के बाद। सलमान अपने आज पर आश्वस्त नजर आते हैं। किरदार निबाहने में उनको कठिनाइयाँ नहीं आतीं। वे दर्शकों का आस्वाद-बोध बखूबी जान गये हैं। वाण्टेड से दबंग तक जैसे पूरी दुनिया बदल गयी है। न सिर्फ समकालीन बल्कि आगे-पीछे के बहुत से सितारे इस लोकप्रियता से कोसों दूर हैं।

सलमान खान, पहले ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने जरूरतमन्दों की सहायता के लिए अपना फाउण्डेशन बनाया है। हाल ही में उनकी बनायी पेंटिंग्स तीन करोड़ में खरीद ली गयीं और इससे प्राप्त धन वे फाउण्डेशन के माध्यम से पुनीत कामों में लगाना चाहते हैं। सलीम साहब कहते हैं कि आज के समय में इन्सान यदि दूसरे की रोटी और उसकी बीमारी की फिक्र, अपनी क्षमताभर स्थितियों से कर पाता है तो यह बड़ा पुण्य का काम है। वे कहते हैं कि होटलों में डिनर और लंच करने वाले बहुत से लोग अपना खाना छोड़ दिया करते हैं जो वे परोसते भी नहीं हैं अपने लिए। यदि वह बँधवा कर साथ ले आया जाये और किसी भूखे को खिलाया जाये तो किसी एक ही का सही, पेट भरेगा। चौराहे पर मांगने वलों से लेकर गरीब वाचमैन तक आपको दुआएँ दे सकते हैं। सलमान का दिल बड़ा है, अपनी क्षमताभर वह ऐसी कोशिशें करता है, मुझे अच्छा लगता है।

दबंग में चुलबुल पाण्डे का अपनी माँ के नहीं रहने पर रोने वाला दृश्य बड़ा मर्मस्पर्शी है, सलीम खान याद दिलाते हैं। सलमान एक वर्सेटाइल एक्टर है, दर्शक उसके सारे अन्दाजों, एक्शन, इमोशन, कॉमेडी सभी में सराहते हैं। दबंग में भी उसके विभिन्न शेड्स को खूब एन्जॉय किया गया है। एक कलाकार का आत्मविश्वास उसके सफल आयामों से प्रकट होता है। सलमान वाकई सफल आयामों के कलाकार हैं। अब उनके निर्देशक, पटकथाकार खास उनको दृष्टिगत रखकर बड़ी सावधानीपूर्वक फिल्में सोचते हैं। उनके पास फिल्मों की भीड़ नहीं है। नये साल में रेडी और बॉडीगार्ड जैसी दो-तीन चुनिंदा फिल्में आकर्षण होंगी।

कोई टिप्पणी नहीं: