भारतीय सिनेमा में सबसे ज्यादा हिन्दी सिनेमा के कर्णधारों में से कुछ को इस बात की फिक्र प्राय: सताती है कि उनकी फिल्म को ऑस्कर मिले। बड़ी-बड़ी पत्रकार वार्ताओं में भी फिल्मकारों से इस बात को लेकर सवाल किए जाते हैं और उनके जवाब लिए जाते हैं। ऑस्कर के लिए किसी हिन्दी फिल्म की प्रविष्टि भेजने की तैयारी मात्र या सुगबुगाहट को ही ऐसी चर्चा मिल जाती है जैसे ऑस्कर बस मिलना तय ही हो गया हो।
जब ऑस्कर से आरम्भिक रूप से ही बाहर हो जाने का यथार्थ सामने आता है, तब निराशाएँ चारों तरफ अपने पैतरें फैलाती हैं, खिसियाहट होती है और एकबारगी पुनर्आकलन सा होने लगता है।
अंगूर खट्टे हैं की तर्ज पर बातें कहीं जाती हैं जो हेड लाइन बनती हैं मगर कुल मिलाकर बात यह सामने आती है कि हमारा काम या हम खुद एक फिल्मकार, फिल्मकर्मी या सर्जक के रूप में अभी ऑस्कर में श्रेष्ठता के लिए स्पर्धियों के बराबर नहीं है कहीं न कहीं। तभी बड़े प्राथमिक स्तर पर वापस लौटने के अप्रिय प्रसंग झेलने पड़ते हैं। हालाँकि ऑस्कर कोई मापदण्ड नहीं है, हमारी श्रेष्ठता का, यह बात हिन्दी फिल्मों के बड़े से बड़े कलाकार प्राय: किया करते हैं।
ऑस्कर हमारी मंजिल होनी भी नहीं चाहिए, ऐसा भी बहुतेरे कहते हैं मगर बावजूद उसके ऑस्कर हमारे लिए आकर्षण और अचम्भा भी है। वह हमें अपने से मुक्त नहीं करता, तभी आमिर खान जैसे सितारे अपनी फिल्मों को ऑस्कर में भेजने के लिए बाकायदा गम्भीर भी रहते हैं।
इस बार ही पीपली लाइव के लिए प्रयास हुआ था लेकिन वह फिल्म भी शुरूआत में ही रिजेक्ट हो गयी। एक राष्ट्रीय दैनिक के प्रथम पृष्ठ पर अगले दिन एक कार्टून प्रकाशित हुआ जिसमें दरवाजे के बाहर नत्था को फेंक दिया गया है और गिरा पड़ा नत्था कह रहा है, गरीब के साथ यही सलूक किया जाता है। ऑस्कर का आकर्षण सबसे ज्यादा हिन्दी सिनेमा में है। यद्यपि हिन्दी से इतर भाषायी फिल्मों में ज्यादा श्रेष्ठ और उत्कृष्ट फिल्में बना करती हैं।
खासतौर पर तकनीक और व्यावसायिक आग्रहों को समझने वाली फिल्म का निर्माण दक्षिण में सबसे ज्यादा होता है, उसमें भी तमिल और तेलुगु सिनेमा सबसे आगे है। बंगला, उडिय़ा, मलयालम और असमिया फिल्में स्क्रिप्ट के स्तर पर उत्कृष्ट निर्माण होती हैं। वे अच्छे दर्शक के मन तक भी सीधे और गहरे पहुँचती हैं लेकिन वहाँ ऑस्कर को लेकर कोई सम्मोहन नहीं है।
किसी भी परीक्षा में कमतर तैयारी या कमजोर कायिक उपस्थिति से बेहतर, उसमें सहभागिता नहीं करना होना चाहिए और ऑस्कर अब तक न मिल पाने का गम भी नहीं होना चाहिए। चिन्ता दरअसल उत्कृष्टता या एक्सीलेंस की, की जानी चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें