बात जिक्र योग्य है कि संसद में इस बात पर पिछले कुछ समय से चर्चा की जाने लगी है कि टेलीविजन के चैनल आपस में स्पर्धा और आगे निकलने की होड़ में अश्लील और बुरे कार्यक्रम दिखा रहे हैं। ऐसे कार्यक्रमों की भरमार हो गयी है जिनमें स्त्रियों की छबि को खराब ढंग से प्रस्तुत किया जा रहा है। भारत सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी इस बात को लेकर चिन्तित है मगर चीजें उसके नियंत्रण से बाहर हैं क्योंकि टेलीविजन कार्यक्रमों के लिए सेंसर बोर्ड नहीं है। इसी कारण इस बात का फैसला जल्दी ही लिया जा रहा है कि टेलीविजन कार्यक्रमों की स्वनियमन संहिता बनायी जायेगी।
पिछले दिनों संसद में शरद यादव ने शून्यकाल में प्रभावी ढंग से इस सवाल को उठाया था कि विभिन्न मनोरंजन चैनलों पर अश्लील और अभद्र कार्यक्रम पेश किए जा रहे हैं। उनका यह भी कहना था कि जब सेंसर बोर्ड इसे नियंत्रित या अनुशासित नहीं कर सकता तो उसे भंग कर दिया जाना चाहिए। हालाँकि बाद में सूचना एवं प्रसारण मंत्री ने जानकारी दी कि टेलीविजन चैनलों के लिए कोई सेंसर बोर्ड नहीं है। इस समय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तीस सौ चैनलों की निगरानी कर रहा है। इसी श्रृंखला में राज्य और जिला स्तर पर भी समितियाँ कार्यक्रमों की निगरानी करती हैं।
शरद यादव ने बाजार की होड़ और भेड़चाल का फायदा उठाते हुए मनोरंजन के नाम पर भद्दे और अश£ील कार्यक्रमों को पेश करने के लिए चैनलों की भत्र्सना की और कहा कि साफ दिखायी दे रहा है कि महिलाओं की मर्यादा को ताक पर रख दिया गया है। देश की संस्कृति, भाषा और तहजीब को बनाये रखने के लिए ऐसे अभद्र कार्यक्रम पेश करने वाले चैनलों को बन्द कर देने की मांग भी उन्होंने की।
यह बात सही है कि चैनलों की अपनी स्वेच्छारिता और उन्मुक्तता अतिरेक के किसी भी स्तर को पार करने का दुस्साहस करने में पीछे नहीं है। इनके पास कोई सामाजिक-सांस्कृतिक उद्देश्य या सरोकार नहीं हैं। लोकप्रियता के शिखर से ज्यादा सम्पन्नता और वैभव के शिखर पर झण्डा गाडऩा ही लक्ष्य रह गया है। भारत सरकार की प्रस्तावित स्वनियमन संहिता बेलगाम चैनलों को नियंत्रित कर पायी तो ही इसकी सार्थकता सिद्ध होगी।
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