फिल्मों में लोकप्रियता और सक्रियता के समय सीमित होते हैं। सितारा कब किसका बुलन्द होगा, कितने समय तक बुलन्द रहेगा, बाद में क्या होगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। यहाँ पिछले दो दशक में समय इतना बदल गया है कि न तो आपस में किसी के व्यक्तिगत रिश्ते बन पाते हैं और न ही लोकाचार निबाहने का शिष्टाचार बाकी रह गया है।
अपने जमाने के एक अच्छे गीतकार योगेश से एक किताब के सन्दर्भ में बातचीत हो रही थी। वक्त पर मदद करने और बाद में भूल जाने की पारस्परिकता की भिन्न वृत्तियों को लेकर बात चली तो उन्होंने पिछले समय तक बड़े सक्रिय और लम्बी पारी जमे रहने वाले गीतकार को लेकर कहा कि मैं उनके पिता का मित्र रहा जो स्वयं बड़े गीतकार थे, बाद में मैंने बेटे से भी वैसी ही आत्मीयता निभायी लेकिन आगे चलकर उनके लिए मेरे संग सामान्य सरोकार रखना भी मुश्किल हो गया। यहाँ तक कि किसी ने मेरा पता या नम्बर जानना चाहा तो सहज विनम्रता से कह दिया करते, मैं सम्पर्क में लम्बे समय से नहीं हूँ, मुझे मालूम नहीं है।
सिनेमा के हर पक्ष में कई-कई तरह की स्थितियाँ यूँ ही चलती रहती हैं। पड़ोस में कौन रहता है, जानते हुए भी न बताने की चतुराई रखते हुए विवशता के साथ असमर्थता जताना, कम खूबी नहीं है, इस व्यावसायिक जगत की। स्थितियाँ गीत लेखक के साथ नहीं बल्कि संगीतकार, गायक कलाकार तक ऐसी ही हैं। एक जमाना था जब नौशाद, हेमन्त कुमार और एस.डी. बर्मन के स्कूल और अनुशासन से ही निकलकर लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल, कल्याणजी-आनंद जी बाहर आये थे और इनके समर्थन से ही अपनी दुनिया देखने का सिलसिला बनाया था। रफी, मन्नाडे, किशोर और मुकेश जी के रिश्ते हमेशा परस्पर बड़े अच्छे रहे, साथ में कई बार एक साथ इन्होंने गाया और व्यवहार भी निभाया।
आज ऐसा नहीं है। सुर-संग्राम, संगीत का महासंग्राम अब ऐसा होने लगा है कि सबकी एक-दूसरे के प्रति त्यौरियाँ चढ़ी रहती हैं। अभिजीत, सोनू निगम, मीका, अनु मलिक, कैलाश खेर जैसे कलाकार मिनट भर में दो-दो बात करने उतारू हो जाते हैं, ऊपर वाला जाने, सचमुच या सुनियोजित। शान, शंकर महादेवन, सुखविन्दर, दलेर में अपनी विनम्रता है मगर ये भी कब किसकी चपेट में आ जायें कहा नहीं जा सकता। महिला पाश्र्व गायिकाओं में अब कविता कृष्णमूर्ति और अलका याज्ञिक का बाजार ठण्डा हो गया है और कमोवेश श्रेया घोषाल भी उसी राह पर हैं।
सोनू निगम अपनी छबि में एक अलग रूपक रचे दिखायी देते हैं, गाने अब उनको भी बहुतायात में नहीं मिल रहे। पहलवान सुखविन्दर व्यावसायिक होने के बावजूद अपने हँसमुख स्वभाव और याराना अन्दाज से खूब पूछे जाते हैं। इस समय बाजार में जैसी उनकी मांग है, वैसी किसी की नहीं।
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