दर्शक के जहन में कब कौन सी फिल्म किस तरह का प्रभाव छोडऩे में कामयाब हो जायेगी, कहा नहीं जा सकता। पिछले दस वर्षों में एन. चन्द्रा नाम के निर्देशक चार-पाँच फालतू सी फिल्में बनाकर अपनी उस पहचान से पूरी तरह खाली हो गये जो उन्होंने अंकुश, प्रतिघात और तेजाब फिल्में बनाकर स्थापित की थी। तेजाब, चन्द्रा की उन्नति का चरम थी, जिसकी चर्चा हम रविवार को अपने समय की किसी चर्चित फिल्म विशेष के सन्दर्भ में कर रहे हैं।
अनिल कपूर और माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म तेजाब का प्रदर्शन काल 1988 का है। अपने समय में यह फिल्म सुपरहिट थी। अनिल कपूर छा गये थे, माधुरी दीक्षित छा गयी थीं, फिल्म के गाने और संगीत को खासी लोकप्रियता मिली थी। इससे पहले अंकुश और प्रतिघात बना चुके चन्द्रा का तेवर तीव्र प्रभाव वाली हिंसक फिल्मों के माध्यम से अपनी एक अलग जगह स्थापित करने वाले फिल्मकार के रूप में पहचाना गया था। तेजाब में बड़े सितारे थे। सुभाष घई से अपने लिए बड़े ब्रेक का इन्तजार कर रहीं माधुरी के गॉड फादर अचानक ही चन्द्रा हो गये थे क्योंकि इससे माधुरी का भी सितारा बुलन्द हो गया था।
दिशाहीन युवाओं की टोली का हीरो मुन्ना ही फिल्म का नायक है। इन युवाओं के पास करने को कुछ काम नहीं है, भविष्य के लिए मार्गदर्शन नहीं है और जिस तरह के कामों में वे अपना जीवन खपा रहे हैं उससे बनती उनकी अराजक छबि के बीच ही फिल्म की नायिका मोहिनी दृश्य में आती है जिसका धन-लोलुप पिता उसे बेच देना चाहता है। फिल्म का नायक जिद्दी और दुस्साहसी है। अपनी दृढ़ता की रक्षा वह किसी भी स्तर पर हिंसक होकर करता है, मगर उसके पीछे उसका अतीत है। नायक की एक बहन भी है जिसे वह उसकी अपनी क्षमताओं पर दृढ़ होते देखना चाहता है। लोटिया पठान नाम का खलनायक भी है फिल्म में।
छोटे-छोटे हिस्से में अनेक क्षेपक हैं फिल्म के साथ जो घटनाओं को अलग-अलग स्तरों पर आपस में जोड़ते चलते हैं। मुन्ना और मोहिनी का प्रेम, मुन्ना के कॉलेज की छत से कूद जाने के बाद परवान चढ़ता है। एक तरफ मोहिनी का पिता जिसके पीछे एक छिपा हुआ अपराध अपनी पत्नी पर तेजाब डालकर मार देने का है। लोटिया पठान बदले में भरा हुआ है। कई तरह की हिंसक घटनाओं, मारधाड़ और सशक्त क्लायमेक्स के बाद फिल्म का अन्त होता है। एक दो तीन, सो गयी ये जमीं, कह दो के तुम हो मेरी वरना जैसे गाने जावेद अख्तर और लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल के गीत-संगीत का कमाल हैं। बाबा आजमी की सिनेमेटोग्राफी अपने सभी दृष्टिकोणों से अच्छी है। अनिल कपूर, माधुरी, किरण कुमार, अनुपम खेर, सुरेश ओबेरॉय, अन्नू कपूर सभी अपने किरदारों मे प्रभावी निर्वाह के कारण आज भी याद हैं।
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