सिनेमा और टेलीविजन में परस्पर अपने किस्म के विरोधाभास हैं। सबसे ज्यादा सुरक्षित टेलीविजन के चैनल और उसके धारावाहिक हैं जिनके अपने संघर्ष ज्यादा बड़े या विकराल नहीं हैं। इसके बरक्स सिनेमा के अपने जोखिम बड़े ज्यादा हो गये हैं। टेलीविजन का नफा और नुकसान, उसी तरह का है जो कौए की उस कहानी से मिलता-जुलता है जिसमें वह चोंच के कंकड़ मटके में डाल-डालकर पानी को अपने तक ले आता है और प्यास बुझाता है और सिनेमा का नफा-नुकसान, प्रतिशत में नफा का बहुत कम और अन्देशे से भरा हुआ और नुकसान का बहुत ज्यादा, गारण्टी की तरह।
धारावाहिक को आप घर में बैठे से लेकर पसरे तक देख सकते हैं और खाते हुए से लेकर उनींदे होते हुए भी। नींद लग गयी और बचा हुआ छूट गया तो भी कोई नुकसान नहीं और वक्त-बेवक्त बिजली चली गयी तो भी कोई मलाल नहीं लेकिन सिनेमा देखने के लिए चलकर जाना होता है, मिलकर जाना होता है और बड़ी जेब-क्षति में आना होता है, उस पर भी मनमाफिक मनोरंजन न हुआ तो सिनेमा देखने के निर्णय, प्रेरणा, जिद और मजबूरी पर लम्बी बहस घर में चलती है। धारावाहिक को जनता में बर्दाश्त करने का माद्दा भी खासा होता है। देखने वाला गरियाता हुआ, उससे असहमत होता हुआ भी उसको देखता चला जाता है। बुरा होगा तो बुराई करते हुए देखा जायेगा और अच्छा हुआ तो तारीफ करते हुए देखा जायेगा। ऐसे में कभी-कभी हास्य धारावाहिक अपना मजमा अलग जमाने में कामयाब हो जाते हैं।
हास्य धारावाहिक बनाना कठिन काम होता है क्योंकि अब हमारे यहाँ हँसने की न तो स्थितियाँ बहुत अनुकूल बची हैं और न ही परिस्थतियाँ। लिखने वाले भी उतने गहरे नहीं कि स्तरीय हास्य का शऊर हो। अब श्रीलाल शुक्ल, राग दरबारी नहीं लिखेंगे और न ही दिवंगत शरद जोशी ये जो है जिन्दगी। इसके बावजूद सब चैनल यथासम्भव स्तरीय और अनुकूल परिस्थितियों के हास्य को अपने धारावाहिकों में स्थापित करने की कोशिश करता है। हालाँकि यह चैनल दर्शकों के रीमोट में आसानी से न तो सेट होता है और न ही दबता है मगर फिर भी इस चैनल के धारावाहिकों ने धीरे-धीरे अपना दर्शक बनाया है। पहले केवल एक धारावाहिक ऑफिस-ऑफिस देखने दर्शक इस चैनल तक जाते थे मगर अब तारक मेहता का उल्टा चश्मा से लेकर मिसेज तेन्दुलकर तक कई धारावाहिकों से दर्शक जुड़े हैं।
कुछ समय पहले लापतागंज धारावाहिक ने दर्शकों को एक बार फिर अपने से जोड़ा और इन दिनों इस चैनल पर भरपूर स्तरीय मनोरंजन है। हास्य धारावाहिकों में मौलिकता के पश्र शाश्वत हैं मगर यहाँ हम जो धारावाहिक देख रहे हैं, वो मानवीय समाज की समग्रता में सकारात्मक उपस्थिति और घटनाओं से कथाएँ और प्रसंग रचते हैं, यह काम सबसे अलग रेखांकित होना चाहिए।
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