शनिवार, 26 मार्च 2011

चश्मे बद्दूर फारुख शेख


फारुख शेख का जन्मदिन है, 25 मार्च। ऊपरवाले ने उनके चेहरे को सौम्यता ऐसी बख्शी है कि वे आज भी बड़े सहज, विनम्र और शिष्ट दिखायी देते हैं, तिरसठ साल के होकर भी अपनी उम्र से बीस साल कम, कम से कम। चार दशक पहले वे फिल्मों में आये थे, एम.एस. सथ्यू की गर्म हवा से और कुछ समय पहले ही उन्होंने फिल्म लाहौर में अपनी श्रेष्ठ सहायक भूमिका के लिए भारत के राष्ट्रपति से नेशनल अवार्ड प्राप्त किया है।

सिनेमा, चकाचौंध और आमजन की आम रुचि में बड़ा सीमित है। हम सभी बहुत आगे रहने वाले, अच्छे-बुरे उपक्रम से किसी न किसी रूप में प्रभावित करने वाले और केवल हीरो-हीरोइन के रूप में ही काम करते हुए दो-चार साल में किनारे लग जाने वाले कलाकारों को ही याद रख पाते हैं। नायकों का ऐसा है कि वो बड़ी मुश्किल से मैदान छोड़ते हैं। उनका बाँकपन साठ पार भी कायम रहता है। हीरोइनों के मामले में स्थिति दयनीय और शोचनीय दोनों हैं। दो-तीन साल पर्याप्त हैं। ऐसे में फारुख शेख जैसे कलाकारों को निरन्तर उनकी खूबियों में हम याद रख पायें, यह कहाँ सम्भव है?

फारुख शेख उन कलाकारों में शुमार होते हैं जो बड़े और असाधारण श्रेणी के फिल्मकारों द्वारा अपनी फिल्मों के लिए खास किरदार विशिष्ट हेतु चुने जाते हैं। ऐसे कलाकार किरदार जीते हैं और ये किरदार ही आपके जहन में अपना ऐसा प्रभाव छोड़ जाते हैं जिन्हें आप लम्बे समय तक याद रखते हैं। सथ्यू से लेकर सत्यजित रे, मुजफ्फर अली, हृषिकेश मुखर्जी, केतन मेहता, सई परांजपे, सागर सरहदी जैसे फिल्मकारों की यादगार फिल्मों में काम कर चुके फारुख शेख अपने किरदारों में जुझारू, मध्यमवर्गीय, स्वप्रद्रष्टा और मूल्यजीवी इन्सान के साथ-साथ मनुष्य की फितरत को भी अभिव्यक्ति में बखूबी अंजाम दिया है।

गरम हवा, शतरंज के खिलाड़ी, गमन, नूरी, उमराव जान, चश्मे बद्दूर, साथ-साथ, कथा, बाजार, रंग-बिरंगी, लाखों की बात, अब आयेगा मजा, एक पल, पीछा करो, बीवी हो तो ऐसी, माया मेमसाब आदि फिल्मों में फारुख शेख की विभिन्न उपस्थितियाँ रेखांकित की जाने वाली हैं। पिछले वर्षों में सास बहू और सेंसेक्स, एक्सीडेंट ऑन हिल रोड और लाहौर में फारुख शेख उम्रमुताबिक परिपक्व छबियों में हैं। हास्य भूमिकाओं में उनका सेंस ऑफ हृयूमर गजब का है। चश्मे बद्दूर फिल्म से लेकर चमत्कार सीरियल तक यह बात प्रमाणित है।

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