बुधवार, 6 अप्रैल 2011

हास्य अभिनेताओं का सिनेमा




टेलीविजन के चैनलों पर अक्सर मेहमूद की एक फिल्म कुँवारा बाप दिखायी जाती है। कुछ-कुछ समय के बाद हम इसे विभिन्न चैनलों पर देखा करते हैं। कुँवारा बाप फिल्म के दृश्य बड़े मर्मस्पर्शी हैं। अपने प्रदर्शन काल 1974 में जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई थी उस समय हमारे महानायक अमिताभ बच्चन, यश चोपड़ा, मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की फिल्मों से गढ़े जा रहे थे। उनकी हिट फिल्मों के बीच यह फिल्म आयी थी और टैक्स फ्री की गयी थी। तब इस फिल्म ने काफी धन अर्जित किया था, खास, हिजड़ों का गाना, सज रही गली मेरी माँ, बहुत हिट हुआ था। राजेश रोशन की संगीतकार के रूप में यह पहली फिल्म थी। दूसरे गाने भी बहुत मनभावन और दिल को छू जाने वाले थे।

उस दौर में मुख्य रूप से मेहमूद का सितारा बुलन्दी पर था। असरानी, जगदीप और मोहन चोटी को भी खूब काम मिला करता था। दिलचस्प बात देखिए, इन सभी ने अपने समय में छोटी=छोटी भूमिकाएँ करके फिल्मों से जो कमाया उससे फिल्म जरूर बनायी। चूँकि ये कलाकार, कभी न कभी हर एक कलाकार हीरो, हीरोइन, खलनायक, चरित्र नायकों की भूमिका निभाने वाले कलाकारों के साथ काम करके अपना दोस्ताना बना लिया करते थे, लिहाजा सभी कलाकार खुशी-खुशी इनकी फिल्मों में एक-दो दृश्यों की भूमिकाएँ कर लिया करते थे और वह भी बिना मेहनताना लिए। इन हास्य कलाकारों द्वारा बनायी गयी फिल्मों की खासियत ही यही होती थी कि पन्द्रह-बीस लोकप्रिय कलाकार इनकी फिल्म में नजर आते थे।

मेहमूद तो खैर इस मामले में बहुत लकी रहे। अमिताभ बच्चन को बॉम्बे टू गोवा में लेने का जोखिम उन्हीं ने उठाया था। बाद में मेहमूद ने पड़ोसन, साधु और शैतान, कुँवारा बाप, एक बाप छ: बेटे, जिनी और जॉनी जैसी अनेक फिल्में बनायीं। संवेदना के धरातल पर कथ्य और दृश्य गढऩे की कला में मेहमूद बड़े माहिर थे। हँसाते-हँसाते रुलाने और रो देने में उनका जवाब नहीं था। असरानी ने भी चला मुरारी हीरो बनने फिल्म बनायी थी जिसमें कई सितारों को लिया था। उनको मेहमूद जैसी सफलता नहीं मिली इसीलिए उन्होंने आगे जोखिम नहीं लिए। मोहन चोटी ने भी धोती लोटा और चौपाटी फिल्म बनायी। कई हीरो-हीरोइन इसमें थे।

वह एक ऐसा जमाना था, जिसमें बड़े सितारों की सुपरहिट के साथ-साथ मझौले और कम प्रतिभाशाली कलाकारों की फिल्में भी बना और चला करती थीं। ऐसी फिल्मों की आवाजाही भी लगातार रहा करती थी। दर्शक इन फिल्मों को देखने आता था और निराश लौटता नहीं था। आज तो मुख्य धारा की फिल्मों में भी सार्थकता का खासा अभाव होकर रह गया है।




2 टिप्‍पणियां:

हरीश सिंह ने कहा…

आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा. हिंदी लेखन को बढ़ावा देने के लिए आपका आभार. आपका ब्लॉग दिनोदिन उन्नति की ओर अग्रसर हो, आपकी लेखन विधा प्रशंसनीय है. आप हमारे ब्लॉग पर भी अवश्य पधारें, यदि हमारा प्रयास आपको पसंद आये तो "अनुसरण कर्ता" बनकर हमारा उत्साहवर्धन अवश्य करें. साथ ही अपने अमूल्य सुझावों से हमें अवगत भी कराएँ, ताकि इस मंच को हम नयी दिशा दे सकें. धन्यवाद . आपकी प्रतीक्षा में ....
भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
माफियाओं के चंगुल में ब्लागिंग

सुनील मिश्र ने कहा…

आपका आभारी हूँ हरीश जी। सिनेमा पर सतत संजीदा लेखन ही हमारी प्रतिबद्धता है। आशा है आपकी शुभकामनाएं हमेशा साथ रहेंगी। मैं ज़रूर अनुसारंकर्ता बनना चाहूँगा।