रविवार, 1 मई 2011

प्रतिबद्ध फिल्मकार को फाल्के अवार्ड


भारत सरकार ने प्रख्यात फिल्मकार, लेखक-निर्माता-निर्देशक के. बालाचन्दर को दादा साहब फाल्के अवार्ड दिए जाने का निर्णय लिया है। राष्ट्रपति के हाथों प्रदान किया जाने वाला दस लाख रुपए का यह सम्मान भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च गरिमापूर्ण सम्मान है जो सिनेमा के क्षेत्र में जीवनपर्यन्त और प्रामाणिक सृजन के लिए प्रदान किया जाता है। के. बालाचन्दर का इस सम्मान से सम्मानित होना, एक ऐसे फिल्मकार के प्रति समाज का आदर व्यक्त करना है जिसने सिनेमा जैसे माध्यम के प्रति पचास साल की अपनी निरन्तरता में प्रतिबद्धता और सामाजिक हित को सर्वोपरि रखा।

के. बालाचन्दर को तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और हिन्दी में अनेक उत्कृष्ट फिल्में बनाने का श्रेय है और कमल हासन, रजनीकान्त, सुजाता, एस.वी. शेखर जैसे कलाकारों को सेल्युलायड पर बड़ी प्रतिष्ठा प्रदान करने में अहम योगदान। कुछ सप्ताह पहले ही एक रविवार को अपने स्तम्भ में हमने के. बालाचन्दर की एक यादगार हिन्दी फिल्म एक दूजे के लिए पर चर्चा की थी। हिन्दी सिनेमा देखने वाला दर्शक इस महत्वपूर्ण फिल्मकार को हो सकता है नहीं जानता हो मगर दक्षिणभाषायी सिनेमा में बालाचन्दर साहब के जिक्र के बिना सिनेमा की सार्थक चर्चा असम्भव है।

के. बालाचन्दर का जन्म 1930 में तंजावुर में हुआ था। अन्नामलाई यूनिवर्सिटी से सन इक्यावन में साइंस ग्रेजुएट होने के बाद वे भारत सरकार के महालेखाकार विभाग में पन्द्रह साल नौकरी में रहे। इसी बीच उनका रुझान रंगमंच की तरफ हुआ, वे लेखन और निर्देशन दोनों रुचियों के व्यक्ति थे। कृष्ण पंजू का सर्वर सुन्दरम और फणि मजुमदार का मेजर चन्द्रकान्त उनके उल्लेखनीय नाटक थे जो 1964 में उन्होंने मंचित किए। इसी साल वे एम.जी. रामचन्द्रन की फिल्म दैवथई से एक पटकथाकार के रूप में जुड़े और सिनेमा की अपनी सृजन यात्रा आरम्भ की। कुछ समय बाद अपनी निर्माण संस्था कवितालय की स्थापना करके फिर उन्होंने अपने आपको पूरी तरह फिल्म के प्रति समर्पित कर दिया।

1965 में उनकी पहली फिल्म नीर कुमिझी आयी। के. बालाचन्दर की उल्लेखनीय फिल्मों में भामा विजयम, इरु कोदुकल, अपूर्व रागांगल, मीठी मीठी बातें, मारो चरित्र, अकालि राज्यम, इंगु ओरु कन्नगी, थन्नीर थन्नीर, प्यारा तराना, पोइक्कल कुथिराई, जरा सी जिन्दगी, अछामिल्लई अछामिल्लई, सिंधु भैरवी, ओरु विडु इरु वसल, एक नयी पहेली शामिल हैं। साठ के दशक में के. बालाचन्दर ने प्रमुख सामाजिक विषयों-मुद्दों पर महत्वपूर्ण फिल्में बनायीं जिनको तमिलनाडु सरकार ने कल्याणकारी कार्यक्रमों में खूब शामिल किया, ऐसी फिल्मों में संयुक्त परिवार, विधवा विवाह, स्त्री अस्मिता, दहेज समस्या, गांधी-मूल्य, न्याय पालिका आदि विषय उल्लेखनीय रहे।

इक्यासी वर्ष के के. बालाचन्दर को मिलने वाला यह प्रतिष्ठित सम्मान उनके सुदीर्घ और सार्थक अवदान के प्रति सामाजिक कृतज्ञता है।

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Sarita Sharma, Delhi-
tatparta ke baavajood koi aisee kami nahi jo 'tatparta' ke chalte aamtaur par rah jaati hai. vishay aur uske niroopan ke prati aapka samarpan shlaaghneey hai..! Badhaai!

सुनील मिश्र ने कहा…

सरिता जी, मैं आपका बहुत आभारी हूँ, आपने यहाँ पढ़ा और पसंद किया। ये कुछेक योगी सदृश फिल्मकार हैं, जिनका सम्मान बड़ी बात है। "एक दूजे के लिए" हिन्दी की इनकी अतुलनीय फिल्म है।