विख्यात लेखिका माला सेन का निधन पिछले रविवार को मुम्बई में कैंसर की बीमारी से हो गया। उनकी एक महत्वपूर्ण और अन्तर्राष्ट्रीय पहचान बैण्डिट क्वीन की लेखिका के रूप में थी जिस पर प्रख्यात निर्देशक शेखर कपूर ने इसी नाम से एक बहुचर्चित फिल्म का निर्माण किया था। यह फिल्म बॉबी बेदी ने चैनल फोर के लिए बनायी थी। अपने निर्माण के समय से ही विवाद में घिरी इस फिल्म को बनाना शेखर कपूर के लिए टेढ़ी खीर था मगर जीवट के धनी निर्देशक ने कई रुकावटों, विघ्र-बाधाओं और सबसे अहम, खासतौर पर उस समय जीवित फूलन देवी के लगातार प्रतिरोध के बावजूद इसे पूरा किया और प्रदर्शित किया।
सिनेमा में आमतौर पर लेखक को कितनी जगह मिलती है, यह हम सब जानते हैं। हाल ही में जब थ्री ईडियट्स के समय उस लेखक से, जिसकी कृति से प्रेरित होकर विधु विनोद चोपड़ा और राजकुमार हीरानी को यह फिल्म बनाने की सूझी, चोपड़ा का खासा विवाद हुआ था। बातचीत में अचानक अनियंत्रित और आप खो बैठने वाले विधु ने उनको काफी भला-बुरा भी कहा था।
ऐसी मशहूर फिल्में बहुत सी हैं, जिनके लेखक को, लोगों को जानने ही नहीं दिया जाता, जाने क्यों? खैर शेखर कपूर ने माला सेन के साथ ऐसा नहीं किया था। शेखर कपूर ने इस बात को स्वीकार भी किया है कि माला सेन की किताब और उनके लगातार सहयोग और सामंजस्य के बगैर वे बैण्डिट क्वीन नहीं बना सकते थे।
फूलन देवी, फिल्म के बनते हुए जितना गुस्सा शेखर कपूर पर उतारती थीं, उतना ही माला सेन पर भी। बहरहाल इसी बैण्डिट क्वीन से फूलन देवी की कहानी दुनिया तक पहुँची। माला सेन को भी बड़ी पहचान, चर्चा और सुर्खियाँ मिलीं और शेखर कपूर तो खैर इस फिल्म के माध्यम से दुनिया के फिल्मकार हो ही गये।
बैण्डिट क्वीन की चर्चा, लेखिका माला सेन को श्रद्धांजलि देते हुए इसलिए भी हम यहाँ अपने स्तम्भ में कर रहे हैं क्योंकि इसी फिल्म के माध्यम से हिन्दी सिनेमा को सीमा बिस्वास, गोविन्द नामदेव, निर्मल पाण्डे जैसे अनूठे कलाकार मिले। जयन्त देशमुख जैसे कला निर्देशक का पट्टी पूजन इसी फिल्म के माध्यम से हुआ। हिन्दुस्तान में फिल्म की श्रेष्ठता हमेशा व्यावसायिक सफलता से प्रमाणित नहीं होती। अब बल्कि श्रेष्ठ फिल्मों का हश्र ही बुरा और स्थिति चिन्ताजनक दिखायी देती है।
मसूरी में जन्मी माला सेन लम्बे समय बीबीसी से जुड़ी रहीं। वे एक तरह फुलटाइम रायटर थीं। उनकी एक किताब डेथ बाय फायर बहुत चर्चित हुई थी। माला सेन लन्दन से हिन्दुस्तान अपनी चिकित्सा के लिए आयीं थी, यहीं उनका निधन हो गया। एक डकैत से राजनेता बनने तक एक स्त्री के कठिन संघर्ष को उन्होंने अपनी किताब में गम्भीरता के साथ रेखांकित किया था। बैण्डिट क्वीन फिल्म और किताब दोनों की पृष्ठभूमि माला सेन और शेखर कपूर के जिक्र के बगैर पूरी नहीं होती, फूलन देवी तो खैर केन्द्र में हैं ही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें