भारत सरकार के 58वें राष्ट्रीय पुरस्कारों के ऐलान में सलमान खान की फिल्म दबंग को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार दिए जाने का निर्णय बहुत वर्षों पहले राजकुमार सन्तोषी की फिल्म घायल को सर्वाधिक राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने की याद भी दिलाता है। उस समय जूरी के अध्यक्ष दादामुनि अशोक कुमार थे। अशोक कुमार ने उस समय घायल फिल्म की व्याख्या करते हुए कहा था कि यह फिल्म सामाजिक विद्रूपताओं के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदात्विों के साथ-साथ चुनौतियों और अन्याय से लडऩे के लिए असाधारण जीवट को भी फिल्म के नायक में व्यक्त करती है।
दबंग को मिलने वाला पुरस्कार दबंग के बारे में एक बार फिर से सोचने का मौका देता है। यों इस फिल्म को इस साल बहुत सारे पुरस्कार मिले हैं। फिल्म के निर्माता, अवार्ड फंक्शन में कई-कई श्रेणियों का पुरस्कार लेने उठ-उठकर थक जाया करते थे लेकिन उनकी विनम्रता काबिले तारीफ है। कहीं-कहीं पुरस्कारों में आसानी से नजर आ जाने वाले पक्षपात के चलते पुरस्कार किसी और फिल्म को दे दिए जाने की स्थितियों को भी उन्होंने सहजता से लिया। उन्होंने स्वीकार किया कि इस फिल्म को सबसे बड़ा पुरस्कार को दर्शकों ने, जनता ने दे दिया है। मंच के पुरस्कार उस विराट समर्थन का अनुसरण भर हैं।
दबंग की कहानी एकदम दूसरी अनेक फिल्मों से मिलती नहीं है। उसका नायक बचपन से ही एक अलग ही किस्म की मस्ती को जीने वाला किरदार है जिसके जीवन में उसकी सगी माँ सब कुछ है लेकिन उसने दूसरी शादी कर ली है अपने और बेटे के अस्तित्व के वास्ते। सौतेला भाई पिता की तवज्जो पाता है तो बालक चुलबुल को ईढ़ नहीं होती। वह बड़े आराम से कहता और जताता है कि आगे चलकर वही सबका उद्धारक होगा। पुलिस की नौकरी में यह नायक साहस-दुस्साहस दोनों का प्रतीक है। आम आदमी की चार बुराइयाँ उसमें भी हैं। खास तौर पर रिश्वत की आदत को फिल्म की स्क्रिप्ट में व्यंग्य की तरह लिया गया है। पाण्डे जी रोमांस में भी लीन हैं, जितना एक मनुष्य उनके बस में है और जितना पुलिस के दबदबे से सम्भव हो वो भी।
सलीम साहब को वह दृश्य सलमान के लिए बहुत मर्माहत करता है जिसमें माँ के मर जाने पर वह अचानक फूट-फूटकर रो पड़ता है। सलमान खान एक पूरी फिल्म को अब जिस आत्मविश्वास में लगभग सहजता और ट्विस्ट ेकरते हुए निभा ले जाते हैं वह अनूठा है। वास्तव में यह बड़ा कमाल है कि हजारों-लाखों की भीड़ किसी स्टेज पर सलमान से एक ही मांग करती है, शर्ट उतारने की और उन्हीं चाहने वालों के लिए यह महानायक पल भर में ऐसा करते हुए भीड़ पर शर्ट उछाल देता है। उस वक्त जरा दर्शकों का ब्लड प्रेशर नापना चाहिए।
दबंग को राष्ट्रीय पुरस्कार देना, एक तरह से जनता की, दर्शक की इच्छा, उसके निर्णय और उसकी मान्यता पर सहमत होना है। सलमान, बड़ा अच्छा समय है, आगे-पीछे दूर-दूर तक सब खाली है, एक ही हो, दबंग, दबंग।
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