गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर का एक सौ पचासवाँ जन्मवर्ष देश में मनाया जा रहा है। कला-संस्कृति के क्षेत्र में बहुत से नवाचार इसी परिप्रेक्ष्य में हो रहे हैं। देश और राज्य की सरकारें भी टैगोर के साहित्य के विविध आयामों में प्रस्तुतियों की सम्भावनाओं को मंच तक लाने का काम कर रही हैं। संस्थाएँ और सृजनधर्मी भी अपने उपक्रम कर रहे हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना विराट था कि उन्होंने सृजन की अपार सम्भावनाओं का ऐसा विहँगम पीढिय़ों को दिया, जो अनूठा और अमर है।
कथा, कविता, संगीत, चित्र, सिनेमा आदि जाने कितने आयामों में गुरुदेव का कृतित्व हमें चमत्कृत करता है। महान फिल्मकार सत्यजित रे ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के जन्मशताब्दी वर्ष में उनकी तीन लघु कहानियों पर तीन लघु फिल्में एक पैकेज में बनायीं। नाम रखा तीन कन्या यानी थ्री डाटर्स। इसकी कहानियाँ थी, पोस्ट मास्टर, मोनिहार और समाप्ति। इसके अलावा चारुलता और फिर बाद में घरे-बाइरे फिल्में भी रे ने टैगोर की कृतियों पर ही बनायीं। रे ने टैगोर पर भी एक लघु फिल्म बनायी थी, जो सम्भवत: अकेली श्रेष्ठ फिल्म है।
सत्यजित रे बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। वे अपनी फिल्मों पर पूरी मेहनत करते थे। वस्त्र विन्यास, संगीत रचना, नामावलियाँ, पटकथा, संवाद, कहानी और निर्देशन और भी जो कुछ बचा-छूटा जो उनको अपने लिए अपरिहार्य लगता हो। अबके अर्थात एक सौ पचासवें साल में एक सराहनीय उपक्रम सुभाष घई ने किया, जो उनकी उस दृष्टि को रेखांकित करता है जिसके चलते उन्होंने एक विशेष समय में एक महत्वपूर्ण होने के संसाधन जुटाये, खासतौर पर आर्थिक और वह भी बिना किसी रचनात्मक हस्तक्षेप के।
घई ने मुक्ता आर्ट्स के बैनर पर टैगोर की लघु कथा नौका डूबी पर प्रख्यात बंगला निर्देशक ऋतुपर्णो घोष से एक फिल्म बनवायी। यह फिल्म 1912 में प्रकाशित टैगोर के लघु कथा संग्रह गाल्पो-गुच्चो की एक कहानी पर आधारित है।
नौका डूबी में प्रसेनजित, रिया और राइमा सेन ने काम किया है। इस फिल्म की पिछले अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में बड़ी सराहना हुई है। सुभाष घई ने संजीदा हिन्दी दर्शकों के लिए इसे कश्मकश नाम से हिन्दी में भी डब किया। नौका डूबी के जरिए ही पहली बार घई और गुलजार आपस में जुड़े क्योंकि घई ने उनसे इस फिल्म के लिए विशेष रूप से रवीन्द्र संगीत के प्रभाव और अनुभूति वाले गीत लिखने के लिए अनुरोध किया। गुलजार ने यह काम मनोयोग से किया है। वे स्वर्गीय बिमल राय की शिष्य परम्परा के विशिष्ट फिल्मकार हैं और परिवेश को लेकर उनकी दृष्टि अनूठी।
यह फिल्म 20 मई को देश भर में रिलीज हो रही है। आज के समय में इस उपक्रम को सकारात्मक दृष्टि के साथ देखा जाना चाहिए।
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