हिन्दी फिल्मों के तकरीबन चालीस साल के सक्रिय अनुभवों वाले प्रचारक, पी.आर.ओ. आर. आर. पाठक ने एक बार कन्नड़ के मशहूर मगर कुछ दिनों पहले दिवंगत अभिनेता विष्णु वर्धन का जिक्र एक उदाहरण से किया। बीस वर्ष पहले करीब, इस अभिनेता ने एक हिन्दी फिल्म इन्स्पेक्टर धनुष में नायक भी भूमिका अदा की थी। विष्णु वर्धन ने एक बार उन्हें बैंगलोर निमंत्रित किया। वे रात को उनके विशाल बंगले में पहुँचे। अगले दिन इस नायक का जन्मदिन था। विष्णु वर्धन और उनकी पत्नी भारती जिन्होंने मस्ताना, कु ँवारा बाप, पूरब और पश्चिम फिल्मों में काम भी किया है, ने उनको खास अगले दिन का वातावरण देखने के लिए बैंगलोर बुलाया था। जन्मदिन के एक रात पहले बारह बजे से बंगले के बाहर कोलाहल बढऩा शुरू हुआ। सुबह होते-होते, कितने हजार लोग परिसर और बाहर बड़े अनुशासित भाव से इस हीरो को शुभकानाएँ देने खड़े दिखायी दे रहे थे, अन्दाज लगा पाना मुश्किल था। पाठक जी ने आश्चर्य व्यक्त किया और पूछा कि यह विहंगम किस तरह इतना नियंत्रित है? विष्णु वर्धन का जवाब था, दर्शकों का प्यार है यह। मेरी इनसे कोई दूरी नहीं है। और वास्तव में जिस तरह से वे सबसे मिले, यथासम्भव आवभगत, सबको गुलदस्ता, फूल देने के अवसर, सब कुछ इतना मर्यादित और अनुशासित कि बयाँ करना मुश्किल।
यह कल्पनातीत है, हिन्दी सिनेमा में। ऐसे बहुतेरे नायक अहँकार और गुरूर से भरे हैं जो परदे पर विभिन्न किस्म के दिल को छू लेने वाले किरदार करते हैं। दर्शकों के दिल के वे करीब दर्शक की तरफ से ही पहुँचते हैं। यह दर्शक का एकतरफा इश्क जैसा होता है। कलाकारों के सारे एप्रोच व्यावसायिक होते हैं। दर्शकों से उनका संवेदनशील रिश्ता कायम नहीं हो पाता। इस बात का सबसे अच्छा उदाहरण समय देखने में आता है जब कई सितारों के पीछे प्रशंसकों की भीड़ उनका आटोग्राफ मांगती है। उस समय जब वे कागजों पर हस्ताक्षर कर रहे होते हैं तब उनका चेहरा ध्यान से देखना चाहिए। दीवाने प्रशंसकों से पीछा छुड़ाने वाला भाव चेहरे पर साफ पढ़ा जा सकता है। भोपाल में राजनीति की शूटिंग के समय अजय देवगन, मनोज वाजपेयी जैसे सितारे प्रशंसकों से घिर जाने पर अनंत में ताकते नजर आते थे। अजय देवगन को गजब के मौन व्रती थे। उनको महसूस होता था कि वे बियाबान में खड़े हैं।
सदाबहार अभिनेता धर्मेन्द्र इस मामले में सबसे विलक्षण हैं। वे हमेशा इस बात को शिरोधार्य करते हैं कि वो जो कुछ भी हैं, उनको और उनके परिवार को जो जगह आज मिली है उसका श्रेय केवल उनके चाहने वालों को है। उनसे मिलने वाले कभी निराश नहीं लौटे। जन्मदिन पर धर्मेन्द्र से मिलने वालों का तांता लगा रहता है। वे सबसे मिलते हैं। सबका प्यार कुबूल करते हैं। इसकी वजह यही है कि वे जमीन को जानते हैं। यही कारण है कि उनका जिक्र, फिल्म इण्डस्ट्री में आदर और प्यार से ही होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें