सोमवार, 30 अगस्त 2010

खेमा, आवाजाही और अदला-बदली

फिल्मों में अपनी-अपनी पसन्दगी के अनुसार टीमें बनने की घटनाएँ नई नहीं हैं। लम्बे समय से यह होता आ रहा है। एक निर्देशक हुआ, उसने अपनी पसन्द के अभिनेता और अन्य कलाकारों का चुनाव किया। उसकी बनायी फिल्म सफल हो गयी तो फिर अगली बार साथ काम करने की स्थितियाँ आयीं। कई बार बात इस तरह भी बनती रही कि आने वाली कई फिल्मों तक साथ काम होता रहा। निर्देशक ने यदि कभी कोई बदलाव चाहा भी तो बिना किसी पूर्वाग्रह के किसी और का चयन कर लिया, उसके साथ काम किया। सफलता या असफलता जो भी हासिल हुई, उसका मलाल नहीं किया।

स्वर्गीय बिमल राय ने दिलीप कुमार के साथ देवदास, मधुमति और यहूदी तीन फिल्मों में काम किया वहीं अशोक कुमार के साथ परिणीता और बन्दिनी कीं। उनके सम्पादक रहे हृषिकेश मुखर्जी धर्मेन्द्र और अमिताभ बच्चन के साथ लगभग समान संख्या में फिल्में करने वाले निर्देशक रहे हैं और हृषिदा ने ही समानान्तर रूप से अमोल पालेकर को लेकर भी फिल्में बनायीं लेकिन इन विलक्षण फिल्मकारों पर अपना कोई खेमा या ग्रुप बनाने का ठप्पा नहीं लगा। इन सभी के लिए अपनी अपेक्षित रचनाशीलता के कलाकारों और लेखकों का चयन उत्कृष्ट काम की आकांक्षा मानी जा सकती थी। किसी कलाकार में भी तब इतना साहस नहीं होता था कि वो न लिए जाने का बुरा माने या गाँठ बांधे।

अब स्थितियाँ दूसरी हैं। फराह खान को शाहरुख खान खेमे का निर्देशक माना जाता है। एक कोरियोग्राफर से निर्देशक तक के सफर में शाहरुख खान का समर्थक फराह के लिए बड़ा मायने रखता है लेकिन साल के शुरू में जब से फराह ने अक्षय कुमार के साथ अपने पति शिरीष के लिए तीस मार खाँ निर्देशित करने की शुरूआत की, तभी से उन पर टिप्पणियाँ हो रही हैं। शाहरुख खान पर क्या बीत रही है, यह मनगढं़त पढऩे-सुनने में आता है और फराह की धारा आगे क्या होगी, इसका आकलन किया जाता है। हाल ही में यह भी सुनने में आया कि फराह ही एक अपने घर की एक और फिल्म अक्षय कुमार को लेकर बनाएँगी जिसका नाम है जोकर। स्वर्गीय राजकपूर ने एक चुनौती जोकर बनकर उठायी थी, वह ऐतिहासिक है, दूसरी चुनौती अक्षय उठाएँगे।

अक्षय कुमार, फराह खान के भाई साजिद के लकी हीरो हैं। वे पहली बार फराह के साथ आ रहे हैं। इसके अलावा यह भी संकेत दिखायी देते हैं कि शायद फराह, आगे कोई फिल्म सलमान को लेकर भी निर्देशित करें। कुल मिलाकर यह कि अब हिन्दी फिल्मों में दायरों को बढ़ाने और विस्तारित करने के बजाय, संकीर्णता में ही सोचे जाने की स्थितियाँ बहुत ज्यादा हैं।

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