बातचीत । रविकिशन
भोजपुरी फिल्मों के महानायक
रविकिशन को फोन पर बताया कि भोजपुरी फिल्मों के ट्रेण्ड को लेकर बातचीत करनी है तो उन्होंने कहा कि कमालिस्तान स्टूडियो आ जाइए, वहाँ भोला बजरंगी फिल्म की शूटिंग कर रहा हूँ। शाम को जब उनसे मिले तो एयर कण्डीशण्ड वेन में वे अपना मेकअप करा रहे थे। स्टूडियो मेें रेल्वे प्लेटफॉर्म का सेट बना हुआ था, रेल की दो बोगियाँ बनी हुई थीं और कुछ जूनियर आर्टिस्टों की आवाजाही हो रही थी, जहाँ उनको शॉट देने जाना था। विगत पाँच-सात वर्षों में अचानक भोजपुरी फिल्मों के जगत को व्यावसाय और लोकप्रियता के क्षेत्र में जिस तरह के पंख लगे हैं, उसकी $जमीन तैयार करने में रविकिशन की अहम भूमिका रही है। उन्हें भोजपुरी फिल्मों का अमिताभ बच्चन कहा जाता है और अमिताभ बच्चन ने उन्हें महानायक की उपाधि दी है।
हिन्दी फिल्मों के बरक्स खड़ी आत्मनिर्भर भोजपुरी फिल्मों की इण्डस्ट्री के इस प्रमुख अभिनेता ने जो कहा, वो उसी भाव के साथ प्रस्तुत है -
पचास ह$जार लोगों के घर का चूल्हा
भोजपुरी फिल्मों की इण्डस्ट्री एक ह$जार करोड़ रुपयों की इण्डस्ट्री है। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग सौ फिल्मों का निर्माण हो रहा है। पिछले पैंतालीस सालों में दो नेशनल अवार्ड भोजपुरी फिल्मों को प्राप्त हुए हैं। पूरे भारत में ये फिल्में लगती हैं। अमिताभ बच्चन से लेकर रमेश सिप्पी, दुनिया-जहान के लोग सब इसमें आ गये हैं। पचास ह$जार लोगों का चूल्हा जल रहा है, परिवार जी रहा है। दरिद्रों की भाषा है भोजपुरी, यह अब कोई बोलता नहीं है। भारत सरकार ने सम्मान दे दिया, नेशनल अवार्ड देकर। हम पहले दिन से इसके पीछे रहे हैं। सारा खून-पसीना देकर इसे सींचा है। आज इण्डस्ट्री इतनी बड़ी हो गयी है। बहुत खुशी होती है हमको। बड़ी अच्छी बात है यह कि आज भोजपुरी अपनी बुलन्दी पर है। कुछ वर्षों में ही यह चमत्कार हुआ है। भाग्य था इसका। समय था इसका। फिर डेडिकेशन भी रहे और हमारा जुनून था इसके पीछे कि इस भाषा को कैसे भी ऊँचाई पर लाना है और आज ये भाषा इतनी ऊँचाई पर आ गयी है।
अपने पैरों पर खड़ी इण्डस्ट्री
एकनॉमिक्स सही है। बजट कन्ट्रोल में है और से$फ है आज। दो-ढाई करोड़ लगाकर भी हिन्दी फिल्में अनसे$फ हो जाती हैं मगर भोजपुरी फिल्मेें से$फ हैं। इस बात की हमको बेहद खुशी है कि भोजपुरी फिल्मों की इण्डस्ट्री अपने पैरों पर खड़ी है और अब बढ़ते ही जायेगी। भोजपुरी फिल्मों का आकर्षण देशव्यापी हो गया है। आपने मुम्बई मेें तमाम पोस्टर और प्रचार देखे होंगे इन फिल्मों के। मुम्बई में भी भोजपुरी फिल्मेें आज उतनी ही चलती हैं, जितनी कि गाँवों में। शहरों में चलती हैं, दिल्ली और पंजाब में भी चलती हैं। यू.पी., बिहार और झारखण्ड में भी चलती हैं। आज भोजपुरी चारों तरफ चल रही है।
महानायक की उपाधि
अमिताभ बच्चन साहब ने हमको महानायक की उपाधि दी। दिलीप साहब ने हमको दुआएँ दीं जब वो स्वयं एक भोजपुरी फिल्म का निर्माण कर रहे थे। सिप्पी साहब ने हमको आशीर्वाद दिया। अमित जी का महानायक कहना अपने आपमें एक बहुत बड़ी उपाधि है। फिर भारत सरकार ने दो नेशनल अवार्ड हमको दे दिया, कब होई गवना हमार के लिए जो उदित नारायण की फिल्म है। कार्पोरेट हाउस अभी आ रहा है। बड़ी-बड़ी कम्पनी$ज आ रही हैं। अब इसका सितारा बुलन्दी पर है।
सीरियस फिल्म मेकर्स की $जरूरत
बड़े-बड़े व्यावायिक लोगों के आने से इस इण्डस्ट्री को खतरा नहीं है, बल्कि फायदा ही होगा लेकिन एण्ड ऑफ द डे, भोजपुरी में जो इसके परिवेश को जानेगा, जो यहाँ के कल्चर को जानेगा वही आदमी सक्सेसफुल सिनेमा बनाने वाला हो सकता है। भोजपुरी को समझना बहुत $जरूरी है, तब भोजपुरी को बनाने के बारे में सोचा जाना चाहिए। कुछ लोग यहाँ आये और भोजपुरी कल्चर को जाने बिना गलत विषय ले लिया, गलत स्क्रिप्ट ले ली, उनके लिए फिर वो काम हानिकारक ही रहा। भोजपुरी फिल्म इण्डस्ट्री में चालीस प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो सीरियस फिल्म मेकर नहीं हैं। भोजपुरी की हवा और सफलता को देखकर लाभ के लिए इससे जुड़ गये हैं। ठीक है, समय है मगर ऐसा हिन्दी फिल्मों में भी है। बहती गंगा मेें हर कोई हाथ धोना चाहता है लेकिन जो इसको इमोशनली लेगा, जो उस परिवेश को समझेगा, प्रोड्यूसर होगा या डायरेक्टर, वहाँ का होना $जरूरी है। जो नार्थ से बिलांग करे, जो वहाँ की माटी से बिलांग करे या जो रीजनल सिनेमा का पावर जाने, क्योंकि यह सिनेमा अलग है। हिन्दी सिनेमा से इसका कोई लेना-देना नहीं है। बोली, भाषा, पहनावा, कपड़ा, सेंटीमेंट, इमोशन, डायलॉग्स, इज्जत, आदर, चरण छूना, सिन्दूर, घूंघट, आँगन इतनी सारी ची$जें हैं कि इसको समझना बहुत $जरूरी है क्योंकि इण्डस्ट्री अब बहुत बड़ी हो गयी है। उसको म$जाक में नहीं लिया जाना चाहिए।
गब्ïबर सिंह भी बने हैं
अभी तो बहुत बाकी है। अभी तो शुरूआत है। साठ फिल्में हम कर लिए हैं। तीस और आ रही हैं हमारी। इनमें पन्द्रह की शूटिंग चल रही है और पन्द्रह की शूटिंग शुरू होने वाली है। एक दिन में आजकल हम एक ही शूटिंग करते हैं। पहले तो दो-दो, तीन-तीन और चार-चार तक कर लिया करते थे मगर अब नहीं करते हैं। उधर हिन्दी सिनेमा भी कर रहे हैं, श्याम बेनेगल की महादेव से लेकर, गोविन्दा वाली फिल्म है गणेश आचार्य जिसके निर्देशक हैं। एक फिल्म सोनाली कुलकर्णी के साथ है, कारण। एक फिल्म अली आटो वाला कर रहे हैं। एक फिल्म अजय देवगन के साथ है। गब्ïबर सिंह कर रहे हैं, एकता कपूर के साथ। उसमें गब्ïबर बने हैं। एक बलम परदेसी कर रहे हैं। ये एक भोला बजरंगी तो है ही। अलग-अलग इश्यू को लेकर फिल्में कर रहे हैं। ऐसे कई इश्यू$ज हैं हमारे पास। कॉमर्शियल फिल्में भी हैं, इन्द्र कुमार और अशोक ठाकरिया की फिल्म है। दोस्तों की कहानी है। तरह-तरह का सिनेमा है, तरह-तरह की कहानी है। इस तरह अलग-अलग सिनेमा कर रहे हैं। अब आगे चार हिन्दी फिल्म किया करेंगे और चार भोजपुरी। आठ फिल्में एक साल में।
आखिरी साँस तक भोजपुरिया सिपाही
भोजपुरी सिनेमा ने ही हमको पहचान दी। यही हमारी आइडेन्टिटी है। मातृभाषा है हमारी। हमारी माँ भी यही बोली बोलती है। इसको लेकर हमारा सेन्टिमेन्ट्स यही है कि आखिरी साँस तक मैं भोजपुरिया सिपाही हूँ। एक सिपाही की तरह काम कर रहा हूँ। यही मेरा सबसे बड़ा सेन्टिमेन्ट् है। भोजपुरी मेें निर्देशन का ख्याल बिल्कुल नहीं है। वो बहुत अलग तरह का काम है। ए$ज एन एक्टर ही सक्रिय रहना चाहते हैं। उसी में अभी बहुत सारा काम बाकी है। डायरेक्शन का ऐसा है, कि दस-पन्द्रह साल बाद उम्र आयेगी, तब उसको तवज्जो दिया जायेगा। हमको रिवेल टाइप का रोल करना है भोजपुरी में। ऐसा आक्रोश जो सरकार पलट दे। क्रान्ति ले आये, ऐसी कोई फिल्म करना चाहता हूँ, जैसे रंग दे बसन्ती जैसी फिल्म। कोई सीख मिले, यूथ को दिशा मिले ऐसी कोई फिल्म क्योंकि भोजपुरी मेें यूथ को हमको बहुत सीख देनी है।
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