बिखरी जुल्फों की छांव
कब तक रहेगी
मालूम न था
बादल कुछ टुकड़ों में आकर
ठहर क्या गए
वहीं के होकर रह गए
तुम मुस्कुराती हो
अपने सम्मोहन पर
बड़े गुमान से
नदी सी बहती केशराशि को
अपने हाथ में थामकर
साँस रोके देखते रहे
बमुश्किल सह गए
तुम अक्सर ऐसे ही
बांध लिया करती हो
कभी हवाओं को
कभी बादलों को
बरखा के अंदेशे
शिकायती लहजों में
यही बात तुमसे कह गए
1 टिप्पणी:
तुम अक्सर ऐसे ही
बांध लिया करती हो
कभी हवाओं को
कभी बादलों को
बरखा के अंदेशे
शिकायती लहजों में
यही बात तुमसे कह गए
सुंदर अभिव्यक्ति।
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