जिसकी लोकप्रियता अधिक होती है, सिनेमा उसी के नाम से पहचाना जाता है। यह परम्परा शुरू से है। यदि सितारे के सितारे बुलन्द हुए तो सितारे के नाम से फिल्म जानी जायेगी और यदि निर्देशक की प्रतिष्ठा समृद्ध है तो फिल्म फिर निर्देशक की मानी जाती है। हालाँकि हम पुराने समय को याद करेंगे तो पायेंगे कि एक अच्छी फिल्म को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने में एक साथ कई बुलन्द परदे पर और परदे के परे लोगों का योगदान रहा करता था।
सिनेमा के आरम्भ के लगभग छ: दशक निर्माण संस्थाओं और बैनर के नाम से जितने जाने जाते थे उतने ही निर्देशक के नाम से भी जाने जाते थे। जितना फिल्म को सितारों की वजह से भाव-प्रभाव मिलता था उतना ही अभिनेत्री को भी उसकी खूबियों की तवज्जो मिला करती थी। चरित्र अभिनेताओं की भी अपनी जगह होती थी और हास्य अभिनेताओं की भी। खलनायकों का भी अपना एक दर्शक वर्ग बना होता था, निश्चित ही वे खलनायक मानसिकता के नहीं होते थे मगर बुरे आदमी के बुरे पन से प्रभावित अवश्य रहा करते थे। गीतकार भी सितारा हैसियत रखते थे और संगीतकार भी। गायकों का भी प्रभाव उतना ही असरकारी था जिनके साथ फिल्म के कलाकार भी बैठक करते थे और अपने लिए बनने वाले गाने पर लम्बा विचार-विमर्श करते थे।
यह सच है कि आरम्भ के इन दशकों में, जब का सिनेमा, सिनेमा के इतिहास का श्रेष्ठ सृजन रहा है, किसी भी माध्यम के सर्जक एक-दूसरे को धकेलकर या पीछे करके खुद आगे आने की इच्छाएँ नहीं रखते थे। बाद में परस्पर नायकों के बीच एक दूसरे को पीछे हटाने का खेल शुरू हुआ और कौन किससे नियंत्रित हो, बाकायदा इसकी फितरत ही स्थापित हो गयी। सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में कुछ कलाकारों ने कुछ कलाकारों के साथ काम करने में परहेज किया तो इसके पीछे यही कारण थे। बराबरी की प्रतिभा, लोकप्रियता और साख वाले निर्देशक और सितारे भी एक-साथ आने में पीछे हटने लगे। आ गये तो फिर फिल्म हिट हो जाने के बाद, किसकी वजह से हिट हुई इसको लेकर बाकायदा अभियान भी चलने लगे।
आज के समय में हम बहुत सारे विरोधाभास देखते हैं।
संजय लीला भंसाली की गुजारिश ऋतिक रोशन के बावजूद विफल हो सकती है। प्रियदर्शन की फिल्म अक्षय कुमार के होते हुए फ्लॉप हो सकती है। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं। शाहरुख खान बीते साल अपने किसी काम को सामने लाये बगैर दूसरों की आतिशबाजियाँ देखते रहे हैं। अब वे इस साल अपनी दो फिल्मों रॉ-वन और डॉन-टू के साथ दर्शकों के सामने होंगे। फिल्मों का क्या होगा, जरा हम यह बात आज के समय में शाहरुख की स्टार-वैल्यू को पुनर्आकलन करके करें जरा।
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