सुपरहिट फिल्म के फार्मूले को तरसते इस मुश्किल समय में महान शो-मैन राजकपूर की बहुचर्चित फिल्म बॉबी को याद करना इसलिए प्रासंगिक लगता है क्योंकि इस फिल्म ने अपने प्रदर्शन काल में आय के रेकॉर्ड तोडऩे के साथ-साथ कई सिनेमाघरों में भी तोडफ़ोड़ की स्थितियाँ खड़ी की थीं। राजकपूर कुछ साल पहले अपनी सबसे महात्वाकाँक्षी फिल्म मेरा नाम जोकर की विफलता से आहत थे। वे अब तक मूल्यों और संवेदनाओं का सिनेमा बनाते हुए शिखर पर स्थापित हो गये थे। मेरा नाम जोकर उनकी रचनात्मकता की सबसे अहम पूँजी थी मगर वह दर्शकों को पसन्द नहीं आयी। आत्ममंथन के समय में उन्होंने अपनी ही एक पहले की सशक्त फिल्म आवारा से प्रेरित हो, बॉबी का तानाबाना बुना।
बॉबी का प्रदर्शन काल 1973 का है। अमीरी और गरीबी के बीच प्रेम किस तरह परवान चढ़ता है, किस तरह अल्हड़ उम्र का प्रेम बिना किसी गम्भीरता या जज्बात के, एक तरह की दीवानगी और जुनून के सामने सारी दुनिया को झुका देना चाहता है, यह उस वक्त बड़ा आधुनिक सा सन्देश इस फिल्म के माध्यम से समाज तक गया था। यह वह वक्त था जब प्रेम विवाह परिवार की रजामन्दी से होता ही नहीं था और खराब शब्दों में अविभावक की इच्छा के खिलाफ शादी करने के मसले को भागकर शादी करना कहा जाता था। राज साहब ने इस फिल्म के माध्यम से अपने बेेटे ऋषि कपूर को नायक बनाया था और नायिका के रूप में एक नया चेहरा डिम्पल कपाडिय़ा को लिया था।
बॉबी में अमीर पिता का बेटा है जो अपने घर में आये दिन रसूख वालों का जश्र देखता है। पार्टियाँ और अमीरों की दुनिया के बीच वो अकेला है। उस अपने घर की बुजुर्ग आया याद आती है जिसने उसको बचपन में पाला पोसा है और अब वो अपने बेटे के पास मछुआरों की बस्ती में रहती है। वह मिसेज ब्रिगेंंजा से मिलने जाता है तो वहाँ उसका सामना अचानक उसकी पोती बॉबी से होता है। पहली नजर का आकर्षण धीरे-धीरे प्यार में बदल जाता है। इधर अमीर पिता अपने बेटे का ब्याह एक बड़े रईस की मन्दबुद्धि बेटी से कर देना चाहता है क्योंकि उसकी नजरों में समाज और दुनिया पर काबिज होने के लिए पैसा ही सब कुछ है। द्वन्द्व यहीं से शुरू होते हैं। नाथ का बेटा और बॉबी घर छोडक़र भाग जाते हैं।
अन्त में जाहिर है, नायक-नायिका ही जीतते हैं। अमीर पिता का अहँकार और नायिका के गरीब पिता का अपमान और खासकर दोनों भूमिकाएँ निबाह रहे सशक्त कलाकार प्राण और प्रेमनाथ के दृश्य बहुत प्रभावी हैं और कहानी को रोचक मोड़ पर लाते हैं। भागे हुए नायक-नायिका के पीछे कुछ गुण्डे पड़ जाते हैं। प्रेम चोपड़ा यहाँ छोटे से मगर दिलचस्प रोल में हैं जो बार-बार कहते हैं, प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा। बॉबी एक सुपरहिट फिल्म थी, बहुत सफल और लम्बे समय याद रहने वाले गाने, झूठ बोले कौआ काटे, मैं शायर तो नहीं, हम-तुम एक कमरे में बन्द हों।
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