हमारे दर्शक प्रियदर्शन को आज जिन तमाम चालू हास्य फिल्मों के माध्यम से जानते हैं उन्होंने शुरू में सजा ए काला पानी, विरासत, मुस्कुराहट और गर्दिश जैसी बड़ी महत्वपूर्ण फिल्में भी बनायी हैं। उन्हीं में से एक मुस्कुराहट फिल्म की चर्चा हम इस रविवार कर रहे हैं। यह बड़ी संवेदनशील फिल्म थी जिसका तानाबाना, मौलिक हास्य की परिस्थितियों के बीच बुना गया था। यह फिल्म जिस दौर 1992 में बनी थी उस वक्त अमरीश पुरी का खासा वर्चस्व हिन्दी सिनेमा में हुआ करता था। नकारात्मक चरित्रों के निर्वाह में वे एकमात्र उत्कृष्ट, विविध प्रयोगी और जोखिम लेने वाले कलाकार माने जाते थे। वे मजबूत थिएटर बैकग्राउण्ड से आये थे और अभिव्यक्ति उनके लिए एक तरह से जीवन-मरण का प्रश्र होती थी। अमरीश पुरी ने प्रियदर्शन के साथ उपरोक्त सभी फिल्में कीं है और भी कुछ फिल्में दोनों ने साथ-साथ कीं।
मुस्कुराहट एक बड़ी खूबसूरत कहानी है जिसमें एक अख्खड़ मिजाज बुजुर्ग आदमी है। उसका परिवार है मगर सभी के अपने-अपने स्वार्थ हैं। यह आदमी अपने से जुड़े हरेक आदमी के चेहरे पहचानता है। वक्त के साथ उसका मिजाज चिड़चिड़ा हो गया है। सभी से उसका बर्ताव डाँट-फटकार वाला है। पल भर को भी उसका सान्निध्य पाने वाला, अपने वक्त को बाद में कोसता रह जाता है। ऐसे इन्सान के जीवन में एक अनाथ और कमजोर मन:स्थिति की एक लडक़ी का अकस्मात आना होता है। यह लडक़ी स्वयं नहीं जानती कि उसकी भूमिका इस चिड़चिड़े और बदमिजाज आदमी के जीवन में क्या है मगर इसी की वजह से यह आदमी एक दिन हँसता है, ठहाके लगाता है, अपनी मूँछ तक कटवा लेता है और उसकी तानाशाही के शिकार जो निर्दोष लोग होते थे, उनसे माफी भी माँग लेता है। यह बुजुर्ग फिर अपने परिवार के उन मतलबपरस्तों को भी आड़े हाथों लेकर उन्हें आइना दिखाता है जिनके सरोकार सम्पत्ति और धनसम्पदा से जुड़े हैं।
मुस्कुराहट, संवेदना और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति में एक अनूठी फिल्म है जिसमें अमरीश पुरी ने असाधारण अभिनय किया है। खासतौर पर हास्य अभिनेता जगदीप के साथ उनका कन्ट्रास्ट बहुत प्रभावित करता है। जगदीप ने भी यह भूमिका बहुत अच्छे ढंग से निभायी है। यह अमरीश पुरी के साथ-साथ अभिनेत्री रेवती की भी फिल्म है। रेवती ने दिल को छू लेने वाला ऐसा अभिनय किया है कि उनके किरदार को भुला पाना मुमकिन नहीं होता। जय मेहता फिल्म के नायक हैं जो बस कुछ दृश्यों में ठीकठाक उपस्थित से लगते हैं।
पूरी फिल्म एक हिल स्टेशन से शुरू होती है। फिल्म की नामावली से लेकर पाश्र्व संगीत, मीटर गेज पर छुक-छुक चलती रेल, स्टेशन और यथार्थ को नजदीक से छूकर फिल्म की अनुभूतियों को मन तक लाने वाला मौसम, सब कुछ बड़ी एकाग्रता देता है। मुस्कुराहट सचमुच अन्तर्सम्वेदना तक पहुँच करने वाली फिल्म है।
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