किरण राव, आमिर खान के करीब उस वक्त आयीं जब लगान बन रही थी। आशुतोष गोवारीकर फिल्म के निर्देशक थे लेकिन मूल मे सारा नियंत्रण आमिर का ही था। आमिर खान, किरण राव की सक्रियता, तल्लीनता और काम के प्रति समर्पण देखा करते थे। वे उनसे प्रभावित होते थे। हर काम वक्त पर या लगभग वक्त से पहले करने के साथ-साथ अपनी प्रतिबद्धता को प्रमाणित करने की लगन ही किरण को आमिर के करीब ले आयी। लगान का परिणाम हिन्दी सिनेमा परिदृश्य में एक अच्छी फिल्म के बनने के साथ-साथ आमिर खान और किरण राव के ब्याह के साथ भी सामने आया। किरण राव की जिन्दगी का यह एक अलग मोड़ था।
हो सकता है, लगान से जुड़ते समय उनको ख्याल भी न रहा हो कि रास्ता किस तरफ जा सकता है? वे अपने कैरियर में आगे बड़ा करने के लिहाज से ही निर्देशन के क्षेत्र में आयीं थीं। उनकी गम्भीरता ने ही आमिर से शादी के बाद धोबी घाट की जमीन बुनी। यहाँ बात दूसरी हो जाती है। आमिर खान की पत्नी बनकर उनके लिए धोबी घाट का सपना देखना शायद ज्यादा आसान हो गया माना जाता है, वरना आमिर खान जैसे चयन में सोच-समझकर सहमत होने वाले कलाकार अन्य परिस्थितियों में किरण राव के प्रस्ताव से कैसे जुड़ते, यह अपने आपमें प्रश्र ही बना रह जाता। किरण राव के लिए लगान में अपने निर्देशक आशुतोष गोवारीकर के लिए काम करते हुए आमिर खान से दृश्यों और संवादों की चर्चा करना और सीधे आमिर खान को निर्देशित करना दो अलग-अलग चीजें थीं।
बहरहाल भीतर ही भीतर जरूर किरण राव इसे अपनी खुशकिस्मती मानती होंगी कि उनकी पहली निर्देशित फिल्म के हीरो आमिर खान हैं। धोबी घाट, जाहिर है, किरण कहती भी हैं कि अलग तरह की फिल्म है। किरण की यह साफगोई भी प्रभावित करती है कि हो सकता है यह फिल्म बहुत सारे दर्शकों को पसन्द न भी आये या सुपरहिट जैसी न हो मगर यह भी उतना ही सच है कि दर्शक की चेतना में आमिर खान का किसी भी परियोजना से जुडऩा ही अपने आपमें काम को आम से विशिष्ट बना देता है। धोबी घाट से पहले अपनी उपस्थिति और मैनरिज्म को संयत और लगभग अप्रत्यक्ष रख, वे तारे जमीं पर और पीपली लाइव को सफल बना चुके हैं। धोबी घाट में भी प्रतीक बब्बर और दूसरे कलाकारों को भी मौके हैं। आमिर यहाँ भी अपनी वाजिब उपस्थिति भर हैं।
हमें किरण राव के रूप में एक युवा और कल्पनाशील निर्देशिका का स्वागत करना चाहिए।
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