क्या सिनेमा के मौसम से कोई सरोकार हो सकता है, हो सकता है यह सवाल आपको अटपटा लगे मगर जरा सोच कर देखिए कि अलग-अलग मौसम में मूड विशेष का सिनेमा क्या आपको अधिक प्रभावित करता है? क्या मौसम में मन के अनुकूल फिल्म न मिलने पर आपका मिजाज गड़बड़ाता है? ये प्रश्र अपनी तरह से दिलचस्प हैं मगर इस रास्ते पर कुछ बातें विचार के दायरे में लायी जाएँ तो शायद इस बात पर सहमति बने कि अलग-अलग मौसम में उस मौसम के अनुकूल मन का मिजाज बनता है और उस समय उसी अनुकूलन की सुरुचि या आनंद मिल जाए तो बात कुछ और होती है।
एक बार हमने यहीं पर बात की थी कि बहुत सी फिल्में, अनेकानेक निर्देशक और कई नायक-नायिकाएँ खास मौसमी परिधानों में समय-समय पर हमें बहुत प्रभावित करते रहे हैं। तब हमने बात शॉल, स्वेटर, कार्डिगन और सूट की, की थी। आज हम अलग प्रभाव के सिनेमा की बात करते हैं। ऐसा जानकारों का कहना है कि गर्मी के मौसम में मारधाड़ और हिंसा की फिल्में दर्शक को ज्यादा प्रभावित करती हैं। मौसम आदमी को बेहाल रखता है, उसकी अपनी दिनचर्या और स्वभाव में ऐसे मौके प्राय: आते हैं जब वो बात-बात पर उत्तेजित हो जाया करता है। लडऩे-भिडऩे को आतुर चेष्टाएँ इसी वातावरण का पर्याय होती हैं। दर्शक दिन-दोपहर सिनेमाघर तक जायेगा नहीं और यदि जायेगा तो एक्शन फिल्में चुनेगा।
बरसात में रूमानी फिल्मों की बयार अलग तरह का आकर्षण पैदा करती है। भीगना, एक अलग तरह की अनुभूति है। बरसात में ही बगीचे मुस्कुराते हैं। बागों में रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं, दूब हरियाती है। ऐसे मौसम में अच्छे गानों और रूमानी कथाओं पर बनी फिल्में बहुत सुहाती हैं। बरसात का मौसम मन को तन्मयता देता है, सौम्यता और ठहराव देता है, ऐसे में प्रेम कहानियों को परदे पर देखना, अच्छी प्रेम कहानियों को परदे पर देखना सुखद होता है। सर्दी के मौसम में वो सारी फिल्में बहुत अच्छी लगती हैं जिनकी शूटिंग हिल स्टेशनों, बर्फीले पहाड़ों और खूबसूरत भू-दृश्यों के बीच हुई हो। रंग-बिरंगा, गरम परिधान, ओढ़ी-लपेटी छवियाँ और गर्म-गर्म उबलती धुँआ देती चाय के दृश्य आपकी अनुभूतियों को अलग ही परवान चढ़ाते हैं। इस मौसम का सिनेमा यदि हीरो-हीरोइन की छेड़छाड़ और नोकझोंक से भरा हो तो फिर कहना ही क्या.. .. ..।
सर्दी के मौसम में खास लांग शॉट के दृश्य प्रभावित करते हैं। नायक-नायिका की नजदीकियाँ अलग तरह की गुदगुदी देती हैं और इसी मौसम में कॉमेडी फिल्मों का रंग भी बहुत चढ़ता है। वजह यह भी है कि मौसम मूड को अनुकूल बनाए रखता है और खुश रहने और हँसने-हँसाने की मानसिकता के विरुद्ध जाने की कोई इच्छा नहीं बनती। सिनेमा को जरा इस अन्दाज में देख-परखकर खुद अपने से पूछिए और जवाब लीजिए कि बात सच है कि नहीं.. .. ..।
1 टिप्पणी:
sahmat hun aapke vichaaron se.
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