उस समय उनकी उम्र चालीस वर्ष थी जब प्रतिज्ञा फिल्म रिलीज हुई थी। इस फिल्म का प्रदर्शन साल 1975 का है। उसी के आसपास शोले अपना परचम फहरा रही थी। वीरू, बसन्ती को पाने के लिए तरह-तरह के जतन करता है, कभी आम के पेड़ पर निशाना लगाना सिखाता है तो कभी मन्दिर में शिव जी के मन्दिर में मूर्ति के पीछे से खड़े होकर लाउडस्पीकर से खुद भगवान बनकर बसन्ती को समझाता है। अपने दोस्त जय की भी मदद माँगता है और जब बात नहीं बनती तो पानी की टंकी के ऊपर चढक़र पूरे गाँव को धमकाकर आखिर मौसी से अपनी बात मनवाकर ही दम लेता है। और भी आसपास की तमाम फिल्में मनमोहन देसाई उनको लेकर धरमवीर और चाचा भतीजा बना रहे होते हैं।
प्रतिज्ञा इसी परिदृश्य की फिल्म है जिसका नायक बिगड़ैल शराबी है और एक पुलिस अधिकारी को बन्दी बनाकर पुलिस की वरदी पहनकर गाँव में अपना एक थाना स्थापित करता है। इस नायक की जिन्दगी बिल्कुल अलग है, अपनी हेकड़ी, ठसक और जेब में शराब की बोतल। अपनी ही तरह के चार पियक्कड़ों को भी पुलिस में भरती कर लिया है। नायिका से उसे प्यार मन ही मन है और नायिका को भी मगर यह बात वो नहीं जानता। जिस समय यह फिल्म लगी थी, भोपाल में बीस हफ्ते चली थी। तब अखबार में फिल्म के विज्ञापन के साथ दो लाइन का यह वाक्य भी आता था, पूरे गाँव की लड़कियों ने अजीत को राखी बांधी मगर राधा ने नहीं, क्यों, जानने के लिए देखिए, प्रतिज्ञा। इसी प्रतिज्ञा का एक गाना, मस्ती भरा जिसमें धर्मेन्द्र जैसे अपनी सर्वज्ञ क्षमताओं के साथ परदे पर खुलकर सामने आ गये, मैं जट यमला पगला दीवाना.. .. ..।
दुलाल गुहा निर्देशित इस फिल्म की कहानी प्रख्यात लेखक नबेन्दु घोष ने लिखी थी, जिन्होंने धर्मेन्द्र की बन्दिनी से लेकर क्रोधी तक कितनी ही फिल्मों की पटकथाएँ लिखीं। विक्रम सिंह दहल के साथ धर्मेन्द्र स्वयं इस फिल्म के निर्माता भी थे। फिल्म अपने आपमें मुकम्मल मजा थी। स्वर्गीय मोहम्मद रफी का गाया गाना, मैं जट यमला, धर्मेन्द्र की स्थायी पहचान बन गया।
पैंतीस वर्ष बाद का आज, वो महानायक अब पचहत्तर का है, अभी भी जोशीला, जवान। हाल में ही पचास साल पूरे किए हैं, फिल्म इण्डस्ट्री में अपनी सक्रियता के। खूब जोश के साथ, देश भर में घूम रहे हैं, अपनी नयी फिल्म यमला पगला दीवाना के प्रचार में। जवाँ चेहरे पर न तो शिकन, न थकान। टेलीविजन के कई शो में खूब नाचे-गाये हैं, धर्मेन्द्र।
धर्मेन्द्र को दरअसल अपने दर्शकों पर गहरा विश्वास है, व्यवहारिक और मिलनसार वे सबसे ज्यादा हैं। प्रेक्षकों को इस समय पूरा विश्वास है कि जिस तरह से धर्मेन्द्र दर्शकों को सिनेमाघर आकर फिल्म देखने के लिए निमंत्रित कर रहे हैं, अपने अनेकानेक हास्य किरदारों में खुदसिरमौर रहे धर्मेन्द्र, मजा बांध देंगे।
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