गुरुवार, 13 जनवरी 2011

धारावाहिकों का मैगापन.. .. ..

बड़े दिनों से एक धारावाहिक का प्रचार बड़ा आकृष्ट कर रहा था। प्रचार पर, जाहिर है, बहुत कुछ निर्भर होता है। अच्छा काम प्रचारित न किया जाये तो लोग जान ही नहीं पाते। हमारे यहाँ अब ऐसी संस्कृति तो है नहीं कि हम परस्पर ऐसे समाज का जीवन्त हिस्सा बन पाते हों, या बन पाने का समय मिल पाता हो, जहाँ हम अपने बेहतर पढ़े, देखे, सुने-समझे की चर्चा कर सकते हों या उसमें लोगों को शामिल कर पाते हों या उसके लिए प्रेरित कर पाते हों। बहरहाल, प्रचार का बड़ा बिगुल, बड़ा बैण्ड बजाकर कई बार चीजें बेहतर रूप में अपने आपको इसलिए स्थापित नहीं कर पातीं क्योंकि वे बेहतर होती नहीं हैं।

मुक्ति का बन्धन का नाम धारावाहिक ऐसा ही लगता है। महानगरों में इसके बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं। इस धारावाहिक का मुख्य किरदार मुम्बई महानगर में एक बड़े रसूखवाला आदमी है जिसका एक बड़ा परिवार है और कम से कम आगे-पीछे तीन पीढिय़ाँ हैं। उसके संवाद ही एक पखवाड़े से भी अधिक समय से प्रचार के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे। प्रोमो में भी उसकी आमद, तमाम कृत्रिम अन्दाज के साथ बड़े शाही ढंग से प्रस्तुत भी की जा रही थी। सारा कुछ इस तरह से हो रहा था, कि खास इस बात का इन्तजार करना पड़ा कि इसका आगाज देखा जाये। पहली कड़ी देखकर ही बहुत निराशा हुई।

बड़े औद्योगिक घरानों, उनके परिवार और लोगों की जिन्दगी के साथ-साथ दुनिया को देखने का उनका नजरिया, लोगों से व्यवहार-बर्ताव करने का उनका रवैया और जीवन-दृष्टि पर समय-समय पर कुछ अच्छे धारावाहिक और फिल्में बनी हैं। यकायक श्याम बेनेगल की फिल्म कलयुग या ठेठ व्यावसायिक अन्दाज की सफल फिल्म कहें तो यश चोपड़ा की त्रिशूल या धारावाहिकों में खानदान का स्मरण हो आता है। मगर आज के समय के काम को देखकर लगता है कि गलत समय में सही चीजों को याद कर लिया गया। मुक्ति का बन्धन नाम के धारावाहिक का तथाकथित महानायक असाध्य अहँकार से भरा है। महानगर में वह बहुत दयनीय स्थिति में आया था, बड़े संघर्ष किए और बड़ा रसूख भी बनाया मगर बर्ताव से लग रहा है कि वह जीवन को ही नहीं समझ पाया।

समग्रता में हम इस धारावाहिक के रूप में जिस बड़े प्रस्तुतिकरण का आरम्भ देख रहे हैं, वह बिखरा-बिखरा सा लगता है। जड़ें, यदि अपनी जगह छोडक़र, शिखर की पत्तियाँ बनकर आसमान को ही ताकने लगें तो नीचे की शाखों का क्या होगा, कैसा विस्तार लेंगी, कहाँ जाएँगी? लेखक क्या लिख रहा है, कौन उसका सलाहकार, बनाने वाला निर्देशक और काम करने वाले अभिनेता, सभी को ठहरकर सोचना चाहिए, दोबारा।

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