बिग बॉस अब समापन की ओर है। तीन महीनों की कश्मकश कई तरह के रंग, कई तरह के अनुभव से भरी रही। इस बार बिग बॉस जरा ज्यादा ही बोल्ड हो गया। शुरूआत से ही कई तरह के विवाद इसके साथ जुड़ते रहे। पता नहीं कितने स्वाभाविक थे, कितने पूर्वनियोजित मगर चर्चा का विषय बने। ये शो अपने पहले ही चरण से एक अलग तरह की पहचान लेकर चल रहा है। हम एक साथ दस-बारह लोगों को एक जगह पर एक लम्बे समय तक रहते हुए देखकर उनके बीच रिश्तों और सहभाव की स्थितियों को देखते हैं, उतार-चढ़ाव को देखते हैं।
हर मनुष्य का अपना स्वभाव होता है, समाज में, अपने-परायों के बीच वह अपने स्वभाव से ही पहचाना जाता है। हम मित्रों से जितने समय मिलते हैं, उतने समय में हम एक-दूसरे का आकलन करते हैं। काम करने की जगहों में सात-आठ घण्टे रहते हैं, वहाँ भी हमारे बिग बॉस होते हैं। हम एक-दूसरे के साथ पूरा दिन रहकर काम के साथ-साथ स्वभाव को भी बाँटते हैं, एक-दूसरे के स्वभाव का शिकार बनते-बनाते हैं। बिग बॉस में चौबीसों घण्टे, नब्बे दिन साथ रहना होता है। कोई दोस्त बनता है, कोई दोस्त नहीं बनता। दोस्ताना अपनी स्थितियाँ भी बदलता है। दूसरों को कटघरे में खड़ा करने वाला खुद श्रेष्ठ होता है, ऐसा वह मानता है।
सबसे बड़ा काम एक-दूसरे की निंदा करना होता है, उससे ज्यादा बड़ा काम, उस व्यक्ति तक उसके लिए कही गयी बात पहुँचाना होता है, जूते-चप्पल चल जाएँ तो दूर से तमाशा देखना तो और भी बड़ा काम। अपनी-अपनी तरह सब उसमें माहिर होते हैं। बिग बॉस एक तरह से आइना है। एक-दूसरे को देखने-दिखाने का। जो टेलीविजन के सामने बैठकर चेहरे देखते हैं, वे भी कई बार अपना चेहरा पोंछने की स्थिति में होते हैं। एक बिग बॉस टीवी में आता है, सलमान खान आज के बिग बॉस हैं और उनके बाड़े में बन्द चेहरे हमारा प्रतिबिम्ब। ईश्वर को मानने वाले उन्हें बिग बॉस कहते हैं, नीली छतरी वाला, छतरी के नीचे जमाना।
हम बिग बॉस में नकली रंग देखते हैं, पल में रंग उतरता देखते हैं, पल-पल में एक-दूसरे के गिरेबाँ में हाथ डालते देखते हैं। अपने आसपास से लेकर खुद अपने को पहचान जाने की समझदारी का प्रदर्शन करते हैं मगर कितना बदल पाते हैं, अपने आपको इसका जवाब देना जरा मुश्किल होता है।
बिग बॉस के चाहे जितने शो आते जाएँ, वृत्तियाँ चाहे जितनी कुत्सित हमें दीखती रहें पर हम कितना बदलेंगे, इसकी जानकारी या जवाबदारी या आत्मबोध शायद ही कहीं देखने में आये। आज बिग बॉस में चार लोग बचे हैं, खली, अश्मित, श्वेता और डॉली। इनमें से भी कम होंगे, अन्त में एक रहेगा मगर वह भी जाहिर है निर्विवाद नहीं होगा परन्तु वह जीतकर जायेगा। जीत किस बात की, विजय किस वजह की, यह प्रश्र शायद कभी हल हो पाये।
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