विशाल भारद्वाज हमारे समय के एक प्रतिभाशाली फिल्मकार हैं, ऐसा बड़ी संख्या में दर्शक और सिनेमा पर संजीदा बात करने वाले लोग मानते हैं। हालाँकि आज के समय में उस तरह के श्रेष्ठ फिल्मकारों की ऐसी कोई श्रेणी नहीं है जहाँ पर एक साथ हम चार-पाँच नामचीन लोगों को एक साथ रखकर बात कर सकें, खासकर सक्रिय फिल्मकारों में। वरिष्ठ और महत्वपूर्ण फिल्मकारों की एक पूरी पीढ़ी इस समय काम नहीं कर रही है।
श्याम बेनेगल जरूर पिछले तीन-चार सालों में फिल्में फिर बनाने लगे हैं। गोविन्द निहलानी के सिनेमा को लेकर कोई नई खबर बहुत दिनों से नहीं आयी है। कुछ वर्ष पहले मुम्बई में जब उनके साथ बातचीत के लिए मिलना हुआ था तब वे एक बहुत खूबसूरत एनीमेशन फिल्म कैमलू पर काम कर रहे थे। केतन मेहता ने बरसों बाद रंगरसिया बनाकर रख दी है जो सिनेमाघर की तरह उम्मीदों भरी निगाहें रखे हुए है। सुधीर मिश्रा इस समय बहुत सारा अप्रासंगिक सिनेमा बना रहे हैं, उनको इस दौर में अचानक निर्माता और फायनेंसर मिल जो रहे हैं। प्रकाश झा जरूर इस परिदृश्य में अपने बड़े वजूद के साथ मौजूद हैं मगर अब उनमें अच्छा व्यावसायिक चातुर्य और आत्मविश्वास आ गया है। हानियों और जोखिमों से उन्होंने अपने को उबार लिया है।
विशाल भारद्वाज निश्चित ही इन सबसे ज्यादा जवाँ और ऊर्जस्व हैं। विदेशी लेखक, किताबें, कहानियाँ उनको नयी फिल्म के लिए प्रेरणाएँ दिया करती हैं। अच्छी और चुनौतीपूर्ण कहानियाँ चुनना और फिल्म बनाना उनका गहन शौक बना हुआ है। मैकबेथ की कृति पर मकबूल और ऑथेलो पर ओमकारा बनाने विशाल ने रस्किन बॉण्ड की कहानी पर ही सात खून माफ भी बनायी। अब उनका ख्वाब हेमलेट पर फिल्म बनाने का है। अगर यह बनी तो हिृतिक रोशन नायक होंगे। गुलजार को अपना गुरु मानने वाले विशाल उनकी फिल्मों के संगीत निर्देशक हुआ करते थे लेकिन उन्होंने गुरु जैसा सिनेमा नहीं बनाया, हाँ गुलजार ने विशाल के लिए गीत खूब लिखे और लिख रहे हैं।
विशाल के बारे में एक बात यह कहना बहुत अच्छा लगता है कि वे अपनी फिल्म की संगीत रचना खुद करते हैं। भारतीय सिनेमा में केवल सत्यजित रे ही ऐसे फिल्मकार रहे हैं जिन्होंने अपनी फिल्म का लगभग सब काम किया, अभिनय के सिवा, लेखन, निर्देशन, संगीत, कला निर्देशन, टाइटिल लेखन आदि। अपनी कल्पनाशीलता को पूर्ण स्वरूप और आकार देने के लिए यह गुण कहें, विशेषता या दक्षता, बहुत मायने रखती है। विशाल अपनी फिल्मों के परिवेश और समय के अनुरूप संगीत को रचते हैं। उनका संगीत हमेशा चिन्हित होता रहा है, उसको कभी खारिज नहीं किया गया। पिछली फिल्म सात खून माफ में उनका डॉर्लिंग गाना उनकी गहन दृष्टि और गहराई का प्रमाण है।
अपनी फिल्मों को बनाने का काम वे करते जरूर एडवेंचर की तरह हैं मगर काम करते हुए जिस सहजता और सादगी को विशाल जीते हैं, वह उनको उनके सभी समकालीनों से अलग रखती है।
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