गुरुवार, 16 जून 2011

लेखिकाओं की पटकथाएँ और संवेदना


कुछ दिन पहले ही मुम्बई में योगवश डॉ. अचला नागर से मिलना हुआ। उनको लेकर एक सम्मान और आदर बरसों से मन में था, जो मिलने बाद उनकी सहजता और आत्मीय संवाद से कुछ ज्यादा ही समृद्ध हो गया। डॉ. अचला नागर मूर्धन्य साहित्यकार स्वर्गीय अमृतलाल नागर की बेटी हैं। साहित्य उनकी विरासत रहा है और पूरब में साहित्य, संस्कृति और परम्परा का जो यशस्वी अतीत है, उसका सर्वोत्कृट उन्होंने बचपन और जीवन से पाया है। डॉ. अचला नागर का बचपन लखनऊ में बीता।

मायानगरी मुम्बई का आकर्षण उनके बाबूजी को मुम्बई ले आया था मगर वे चकाचौंधभरी दुनिया से जल्दी ही भरपाये। यद्यपि वे जितने दिन वहाँ रहे, अपनी गरिमा और ठसक के साथ और लौटे तो फिर लखनऊ में अपने सृजन में मगर हो गये। डॉ. अचला नागर प्रख्यात फिल्मकार बी.आर. चोपड़ा की निर्माण संस्था बी.आर. फिल्म्स से जुड़ीं और उनके लिए एक सफल फिल्म निकाह की पटकथा लिखी। यह फिल्म बहुत चर्चित हुई थी। जे. ओमप्रकाश निर्देशित फिल्म आखिर क्यों को एक स्त्री की सशक्त अभिव्यक्ति के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण फिल्म माना जाता है। इसमें स्वर्गीय स्मिता पाटिल की निभायी गयी भूमिका यादगार है और याद की जाती है।

डॉ. अचला नागर की पटकथा में रिश्ते-नाते, जवाबदारियाँ, वफाएँ, प्रेम, जज्बात, निबाह के छोटे-छोटे दृश्य इतने सशक्त होते हैं कि दर्शक बँधा रहता है। यह सचमुच रेखांकित करने वाली चीज है कि एक स्त्री-सर्जक मानवीय जीवन के समूचे परिदृश्य को जिस संवेदना की निगाह से देखती है, जिस गहराई से उसका आकलन करती है, उतनी नजदीकी पुरुष पटकथाकारों में शायद नहीं होती। डॉ. अचला नागर का जिक्र करते हुए खासतौर पर उनकी एक सशक्त फिल्म बागवान की बात करना बहुत उचित इसलिए लगता है कि इस फिल्म के माध्यम से ही अमिताभ बच्चन अरसे और अन्तराल बाद किसी अच्छी भूमिका के लिए एकदम नोटिस किए गये थे।

बागवान बिना किसी अतिरिक्त व्यावसायिक सावधानी या प्रचार के प्रदर्शित फिल्म थी जो परिवारों ने पसन्द की थी और सफल भी थी। बागवान बरसों याद रहने वाली फिल्म थी। बाद में डॉ. अचला नागर ने रवि चोपड़ा के लिए बाबुल फिल्म की पटकथा भी लिखी थी, यद्यपि वह उतनी सफल नहीं हुई मगर उसका विषय आज के सन्दर्भ में काफी साहसिक था। डॉ. अचला नागर की पटकथा की यह विशेषता है कि उसकी हिन्दी और भाषा-विन्यास बहुत मायने रखता है। कलाकार उसे परदे पर प्रभावी ढंग से अभिव्यक्त करते हैं और वह रूटीन फिल्मों से अलग हटकर होती है। ईश्वर, मेरा पति सिर्फ मेरा है, निगाहें, नगीना, सदा सुहागन आदि उनकी अन्य चर्चित फिल्में हैं।

हनी ईरानी की कथा-पटकथा की अनुभूतियाँ अलग ढंग से मर्म को स्पर्श करती हैं, उन पर बात किसी और दिन क्योंकि उनकी दृष्टि पर बातचीत अलग से ही सम्भव है।

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