बुधवार, 15 जून 2011

देखिए फिल्में जखीरे की शक्ल में


शायद ऐसी बहार पिछले कई महीनों के बाद आ रही है। बड़ी और मँहगी फिल्में अगले महीने से रिलीज होने जा रही हैं, इस बीच रेडी या एकाध किसी अपवाद को यदि छोड़ दिया जाये तो लगातार बी और सी ग्रेड फिल्में रिलीज हो रही हैं पिछले कई महीनों में। भरी गर्मी में ऐसी फिल्मों के शो भी कैंसिल होने की घटनाएँ सुर्खियाँ बनी थीं, लेकिन पाठकों, जो कि दर्शक भी हैं, जाहिर है, जानकर आश्चर्य होगा कि 17 जून को देश में एक साथ पाँच-छ: फिल्में रिलीज हो रही हैं।

ये फिल्में हैं, भेजा फ्राय-टू, सायकल किक, आल्वेज कभी कभी, बिन बुलाये बाराती, भिण्डी बाजार आदि। एक तरह से फिल्में इस सप्ताह जखीरे की शक्ल में सिनेमाघरों में लग जाने वाली हैं। यों सभी फिल्मों के नाम और स्टार कास्ट के साथ जिस तरह का लिफाफा पेश है, वह मजमून की एडवांस गारण्टी है। भेजा फ्राय पहले जब बनकर आयी थी, सुनियोजित चर्चा और आंशिक सराहना से ही विनय पाठक बिना किसी आकर्षण के स्टार बन गये थे। उन्हीं की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश है, भेजा फ्राय-टू। सायकल किक एक अलग तरह की फिल्म है जिसको अच्छी फिल्मों के प्रेमी, जिनकी संख्या हमेशा सौ-पचास ही होती है, किसी भी शहर में, उतने ही देखने जायेंगे।

आल्वेज कभी कभी शाहरुख खान के घराने की फिल्म है, नॉन-स्टारर। आयेगी, चली जायेगी जैसी ही कहानी और गुंजाइश लगती है। बिन बुलाये बाराती का मजमून हास्य है, बहुत सारे हास्य सितारे इसमें भरे पड़े हैं, सबसे ज्यादा इन दिनों लोकप्रिय मगर चेहरे और शरीर से खासे स्थूल दिखायी देने वाले ओम पुरी भी। हो सकता है छोटे शहरों में इस फिल्म के भाग जगें क्योंकि ओछी कॉमेडी के लिए शक्ति कपूर आदि को भी जुटाया गया है।

भिण्डी बाजार, एक अलग तेवर की फिल्म है, मगर उसकी बोल्डनेस ज्यादा ही अराजक और दुस्साहस की शक्ल में प्रोमो में नजर आ रही है। अपराधी, बुरे और लुच्चे आदमियों की जबान को अब सिनेमा में ज्यों-का-त्यों पेश करने का यथार्थवाद अब सिनेमा में किसी के रोके नहीं रुकने वाला।

फेसबुक में देश के प्रतिष्ठित फिल्म समीक्षक खालिद मोहम्मद ने इस बात की चिन्ता जतायी है कि लीला सेमसन के चेयरपरसन बन जाने के बाद अश्लील और घटिया भाषा का सिनेमा तेज आमद में है जिसके नियंत्रण की हम कामना कर रहे थे। इसका अर्थ यह है कि उनके आने के बाद भी तथाकथित नियम, सिद्धान्त और लगातार बनी-बची रहने वाली गुंजाइशों का पलड़ा भारी है, स्वच्छता, साफ-सफाई और सुधार की सम्भावनाएँ क्षीणता की शिकार।

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