बेशक सुभाष घई ने युवराज के बाद काफी समय से कोई फिल्म नहीं बनायी है मगर वे एक अच्छा काम ये कर रहे हैं कि इस कठिन समय में कुछ अच्छी फिल्मों के निर्माण में आगे आये हैं। उन्होंने भाषायी फिल्मों में और खासतौर पर किसी प्रतिष्ठित निर्देशक के साथ जुड़े युवाओं की प्रतिभा को ढूँढ़ा है और उन्हें फिल्म निर्माण का काम सौंपा है। अभी कुछ ही दिनों पहले हमने अपने स्तम्भ में घई द्वारा निर्मित फिल्म नौका डूबी की चर्चा की थी जो टैगोर की कहानी पर ऋतुपर्णो घोष ने निर्देशित की थी, यह फिल्म हिन्दी में कश्मकश के नाम से भी आयी थी।
एक दूसरा उपक्रम सुभाष घई ने सायकल किक नाम की फिल्म का निर्माण करके किया है जो अगले सप्ताह प्रदर्शित हो रही है। यह बात अलग है कि जिस तरह इस फिल्म का नाम है, कोई सितारा पहचान वाला कलाकार नहीं है, कैसे यह फिल्म दर्शकों को आकृष्ट कर पायेगी लेकिन एक मर्मस्पर्शी, जीवन मूल्यों और आत्मविश्वास की प्रेरणा देने वाली यह फिल्म दूसरी तमाम निरुद्देश्य और स्तरहीन फिल्मों से सायकल किक बहुत अलग है। सायकल किक का फिल्मांकन दक्षिण के सुदूर अंचल में एक छोटे से खूबसूरत गाँव में हुआ है, जहाँ अच्छे-अच्छे घर बने हैं, सडक़ें हैं, स्कूल हैं और आसपास का वातावरण सुरम्य है।
यह दो ऐसे भाइयों की कहानी है जिनके माता-पिता नहीं हैं। रामू बड़ा है और देवा छोटा। रामू, देवा को बहुत प्यार करता है, अपनी जिम्मेदारी समझता है। स्वयं वह सुबह जल्दी उठकर काम पर जाता है और दोपहर कॉलेज की पढ़ाई करता है। रामू ने देवा को एक अच्छे स्कूल में दाखिल करा रखा है जहाँ वो अच्छे पढऩे वाले छात्रों में गिना जाता है। अपने कंधे पर छोटे भाई को बैठाकर रामू हर कहीं ले जाता है, उसकी जरूरत की चीजें दिलाता है, उसका ख्याल रखता है। एक बार दोनों भाइयों को एक सुनसान जगह पर एक टूटी-फूटी सायकल मिलती है। दोनों भाई उसके पुर्जे-पुर्जे उठा लाते हैं और जोडक़र सायकल खड़ी कर लेते हैं। यह सायकल उनके जीवन पर खुशियाँ और परिवर्तन लाती है। अब रामू ज्यादा काम कर सकता है, जल्दी अपने भाई के पास पहुँच जाता है।
एक दिन उसकी सायकल चोरी हो जाती है, वह जानता है चोर कौन है पर जिसने सायकल चुरायी वह वह कॉलेज का साथी उसे लौटाने को तैयार नहीं है। अब फैसला एक मैच से होना है, फुटबाल मैच से। कोच सच्चाई को जानता है और हौसले तथा जीतने के जज्बे के साथ रामू को खड़ा करता है। सायकल किक एक संवेदनशील फिल्म भी है। घई ने ही कुछ वर्ष पहले श्रेयस तलपदे और नसीर के साथ इकबाल बनायी थी। दर्शकों को इस फिल्म तक जाना चाहिए। चर्चित फिल्म मॉर्निंग रागा के एसोसिएट डायरेक्टर रहे निर्देशक शशि सुदिगला ने विषय का निर्वाह बड़ी जिम्मेदारी के साथ किया है।
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