छोटे परदे पर भव्यता अपनी एक अलग तरह की स्पर्धा के साथ एक दशक पहले तक दिखायी देती थी। पौराणिक और ऐतिहासिक धारावाहिकों के साथ खर्चीले प्रयोग शुरू हुए थे। रामायण से महाभारत, महाभारत से चाणक्य और चाणक्य से भारत एक खोज। लम्बे-लम्बे धारावाहिक, कथ्य की प्रामाणिकता और यथार्थ के लिए विराट नगर फिल्म स्टूडियो में खड़े किए जाना, मँहगी कास्ट्यूम्स, गहने और प्रभाव से लकदक प्रॉपर्टियाँ सबका एक अनूठा प्रभाव घरेलू दर्शकों के आकर्षण के लिए धारावाहिक बनाने वालों ने कभी रचे थे।
यह परम्परा बीच में टूट सी गयी थी जब अतिव्यावसायिक दृष्टि और सम्पर्क वाले धारावाहिकों का दूसरे चैनलों ने प्रादुर्भाव किया। भव्यता आधुनिक और समृद्ध परिवारों की जीवनशैली पर आकर स्थिर हो गयी। इन सबके बीच बहुत से अच्छे धारावाहिकों की याद विस्मृत हुई जिनमें से एक चन्द्रकान्ता सन्तति भी था। इस धारावाहिक को भी प्रसारण के समय परिवेशजनित भव्यता और चकाचौंधभरा वातावरण देने की कोशिश की गयी थी। बाबू देवकीनन्दन खत्री का यह दुरूह उपन्यास फिल्मांकन के लिए आसान नहीं था लेकिन इसके निर्माता और निर्देशक ने चुनौती के रूप में इस काम को स्वीकार किया।
सुनील अग्निहोत्री ने जो कि उस समय धारावाहिकों के बहुत सफल और मूल्यवान निर्देशक समझे जाते थे, इस धारावाहिको को सुरुचिपूर्ण और दिलचस्प बनाया। प्रेम, धोखा, छल, षडयंत्र और दाँवपेंच से भरी यह कथा छोटे परदे पर अपनी छाप छोडऩे में कामयाब रही थी। दर्शकों मेें लोकप्रिय होने के बावजूद यह धारावाहिक हालाँकि पूर्णता तक नहीं पहुँच सका था पर एक लम्बे अन्तराल में भूल गये दर्शकों को यह अन्दाज न होगा कि जहन में अपनी मुकम्मल स्मृतियों के साथ कहीं ठहरे इस धारावाहिक के फिर एक बार शुरू होने और आगे बढऩे की स्थितियाँ आयेंगी। यह इच्छाशक्ति है सुनील अग्रिहोत्री की जिन्होंने कहानी चन्द्रकान्ता की, के नाम से दर्शकों में इसकी स्मृतियों को पुन: जाग्रत करने का उपक्रम किया है। सोमवार से इसका प्रसारण फिर आरम्भ होना इस उपक्रम की पुष्टि करता है।
सुनील ने इसको दोबारा शुरू करते हुए निर्माता भी खुद ही बनना उपयुक्त समझा। उनको अपने वही सारे कलाकार फिर सहयोग करने को तैयार हो गये जो पहले उनके साथ थे, विन्दु दारासिंह, राजेन्द्र गुप्ता, शिखा स्वरूप, मामिक, कृतिका देसाई आदि। पुनीत इस्सर, रूपा गांगुली, अर्जुन, निशिगन्धा आदि कलाकारों ने भी खुशी-खुशी इसका हिस्सा बनना स्वीकार किया। इस धारावाहिक में दर्शकों की एक बड़ी दिलचस्पी का कारण तिलिस्म, जादू, चमत्कार थे जो विभिन्न किरदारों, चरित्रों, प्रवृत्तियों से अधिरोपित हुआ करते थे। परदे पर ऐसी कहानियों का निर्वहन अत्यन्त जटिल होता है। तकनीक और आधुनिक संसाधनों के साथ-साथ अब कम्प्यूटर ग्राफिक्स का प्रयोग धारावाहिकों से लेकर रोबोट फिल्म तक हमने देखा है।
कहानी चन्द्रकान्ता की, इस नये समय, नये संसाधनों और नयी इच्छाशक्ति के साथ एक बार फिर शुरू हो रहा है। देखना होगा, हम समय से जितना आगे आये हैं, उस दूरी को पाटने में इसकी विशेषताएँ क्या हैं.. .. ..?
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