शनिवार, 25 जून 2011

रघुवीर यादव और मैसी साहब


मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर का एक युवा अचानक उस समय लाइम लाइट में आ गया जब उसकी पहली फिल्म मैसी साहब चर्चा में आयी। प्रदीप कृष्ण निर्देशित यह फिल्म 1985 में प्रदर्शित हुई थी। राष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ-साथ इस फिल्म को देश-विदेश के कई फिल्म समारोहों में सराहा गया। रघुवीर यादव, छोटी कद-काठी, अत्यन्त सामान्य नैन-नक्श वाले युवा थे। मैसी साहब से पहले उनको कोई नहीं जानता था और मैसी साहब के बाद सब उन्हें जानने लगे। पचमढ़ी में फिल्मायी गयी इस फिल्म की चर्चा इस रविवार हम कर रहे हैं। पच्चीस साल पहले की यह फिल्म पराधीन भारत में अंग्रेज साहिबान और उनके अधीन काम करने वाले अपने देश के लोगों की स्थितियों पर चित्रित होती है।

कहानी एक अंग्रेज अधिकारी और उसके अधीन भारतीय क्लर्क के बीच सरकारी कामकाज और उनकी परिस्थितियों के बीच घटित होती है। अंग्रेज अधिकारी के जिम्मे विकास का काम है। वह सुदूर अंचल में पदस्थ है। उसकी देखरेख में सडक़ निर्माण का काम हो रहा है। एक बाबू सारे अफसर के निर्देश पर कार्य को अंजाम देता है। सडक़ निर्माण का काम अभी पूरा नहीं हुआ है और उस मद का बजट खत्म हो जाता है। अफसर आदेश देता है कि काम रोक दिया जाये। अपनी स्थितियों को बनाये रखने की मजबूरी, बाबुई खुशामदगीरी और चाटुकारिता में खुशी-खुशी शामिल क्लर्क अफसर को सुझाव देता है कि दूसरे मदों में उपलब्ध रुपया इसमें इस्तेमाल किया जा सकता है, जो बाद में राशि प्राप्त होने पर उसी मद में रख दिया जायेगा। पहले के अधिकारियों ने ऐसा किया भी है, यह कोई नयी बात नहीं है।

अफसर मैसी का सुझाव मान लेता है, काम चल निकलता है, इसी बीच अंग्रेज अफसर लम्बी छुट्टी पर चला जाता है। सरकारी आडिट होता है और मैसी को इस घपले का दोषी पाया जाता है। मैसी को नौकरी से निकाल दिया जाता है। अब मैसी का पूरा जीवन संकट में आ गया है। अफसरों की जी-हुजूरी करते हुए छोटी-मोटी शान-शौकत उसकी भी बन गयी थी। मरजी की शादी भी उसने कर ली थी। बच्चा भी हो गया है। लेकिन अब उसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है और वह सिद्ध अपराधी है।

मैसी साहब को विश्लेषित करते हुए प्रख्यात समीक्षक मनमोहन चड्ढा ने एक जगह लिखा है कि मैसी साहब फाइल संस्कृति की विरासत पर व्यंग है, जहाँ लेखा-बहियों का मुँह भरना, उन्हें ठीक-ठाक रखना ही सबसे जरूरी काम है। मैसी हिन्दुस्तानी मानस का प्रतीक है, जो अंग्रेज दिमाग की दुविधा को समझे बिना उसे उन्नति का मसीहा मानकर अपने मालिक के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार है। रघुवीर यादव और नायिका अरुंधति राय फिल्म के सहज पात्र बनकर याद रह जाते हैं। मैसी साहब एक महत्वपूर्ण और दुर्लभ फिल्म है जिसका आइना हमारी आँखें चुँधिया देता है।

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