बुधवार, 22 जून 2011

ब्रम्हचारी से चिल्लर पार्टी तक


बच्चों को लेकर, बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए सिनेमा बनाना एक बड़ी चुनौती है। ऐसा लगता है कि कच्ची और मुलायम मिट्टी आपके हाथ में है और आपको आकार गढऩे में आसानी होगी, मनचाहा मोड़ देने में आसानी होगा मगर ऐसा होता नहीं है। बड़े कलाकारों के साथ काम करते रहने वाले महारथी भी इस मामले में अपने आपको असहज महसूस करते हैं। बाल चित्रकला प्रतियोगिता करवा लेना, बच्चों से वाद-विवाद या भाषण प्रतियोगिता करवा लेना, खेलकूद से लेकर गीत-संगीत और नाटक तक में जोड़ लेना- ये सभी काम उस आयाम में सहभागी होते ही उसकी चुनौतियाँ भी बतलाते हैं। इसी तरह सिनेमा का भी है।

बच्चों का सिनेमा बनाना आसान नहीं होता। न उनको साथ लेकर और न ही उनके लिए। अभी इन दिनों एक फिल्म चिल्लर पार्टी की चर्चा खूब है। यह फिल्म अगले महीने प्रदर्शित होने जा रही है। इसके प्रोमो टेलीविजन के विविध चैनलों में दिखाये जा रहे हैं। चिल्लर पार्टी फिल्म के निर्माता सलमान खान हैं। सलमान धीरे-धीरे, अपने फाउण्डेशन के माध्यम से कुछ अच्छी फिल्मों के निर्माण का लक्ष्य रखते हैं। यह उपक्रम उसी दृष्टि का है। चिल्लर पार्टी की बात करते हुए पिछली कुछ फिल्में याद आती हैं, जिनमें खासतौर से शम्मी कपूर की फिल्म ब्रम्हचारी है जिसमें नायक बहुत सारे ऐसे बच्चों का भाई और अविभावक है जिनके माता-पिता का का पता नहीं है।

चक्के पे चक्का, चक्के पे गाड़ी, गाड़ी में निकली, अपनी सवारी, गाना इस फिल्म का ही है, जिन्होंने यह फिल्म देखी है, उनके जेहन में इस गाने के साथ ही घटित होती फिल्म की धुँधली ही सही, छबियाँ एकत्र होती होंगी। यह फिल्म इस तरह की पहली पहल थी, बाद में मिस्टर इण्डिया के रूप में ब्रम्हचारी दोहरायी गयी। बच्चों का सिनेमा कई आयामों में बँटा हुआ है, पर अविभावकविहीन बच्चों के मानस को लेकर बनती फिल्में आपको एक अलग मन:स्थिति में ले जाती हैं।

चिल्लर पार्टी भी उसी तरह की फिल्म है। हालाँकि चिल्लर पार्टी के बच्चे आज के ऐसे समय के सच को सामने लाते हैं, जिसमें उनका पूरा बचपन कुदृष्टियों के निशाने पर है। सलमान इस फिल्म को बड़ी रुचि के साथ प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। देखना होगा, ब्रम्हचारी और मिस्टर इण्डिया के रास्ते चिल्लर पार्टी किस प्रभाव में हमारे सामने आती है?

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