रविवार, 19 जून 2011

छुपने वाले सामने आ


शम्मी कपूर के बारे में यह बात हमेशा कही जाती है कि उन्होंने अपने बड़े भाई और पिता की सशक्त उपस्थिति और प्रभाव से निष्प्रभावी रहते हुए अपनी राह खुद गढ़ी। यद्यपि एक अभिनेता के रूप में वे सर्वश्रेष्ठ अदायगी या असरदारी का न तो दावा करते थे और न ही वैसे थे, पर अपनी क्षमताओं और सीमाओं में उन्होंने लोकप्रियता का एक पूरा समय अपने पक्ष में किए रखा।

उनकी अपनी धारा में किसी का हस्तक्षेप नहीं हुआ और वे अपने वरिष्ठ, समकालीन और नवोदितों के बीच अपनी समानान्तर हैसियत में बने रहे। यह शम्मी कपूर का एक बड़ा गुण था, जिसके हम हमेशा कायल हैं, इसीलिए इस रविवार उनकी एक यादगार फिल्म तुम सा नहीं देखा को याद करना प्रासंगिक लग रहा है।

फिल्म तुम सा नहीं देखा को लिखा और पढ़ा तुमसा नहीं देखा ही जाता रहा पर उसका शुद्ध नाम तुम और सा को अलग करके ही लिखा जाता है। इस फिल्म का प्रदर्शन काल 1957 का है। अब से लगभग पचपन वर्ष पुरानी इस फिल्म को देखते हुए हम इसकी सहज मगर रोचक कहानी और मधुर गीत-संगीत के आकर्षण में खो जाते हैं।

अपनी जवानी में अपराध करके दूर कहीं पहचान बदलकर बस गये एक किरदार की अपनी पत्नी और बेटे की तलाश से कहानी शुरू होती है। शहर में बेटा जवानी की दहलीज पर कदम रख चुका है, वो गाना भी गा रहा है, जवानियाँ ये मस्त-मस्त। घर में बूढ़ी माँ है। बेटे को रोजगार की तलाश है। बेटा पिता से नफरत करता है, माँ से कह देता है कि जिस दिन वो मिलेंगे उस दिन तुझे किसी एक चुनना होगा, पति को या बेटे को।

पिता ने अपनी पत्नी और बेटे को तलाश करने के लिए नौकरी का विज्ञापन दिया है, जो पत्नी द्वारा ही पढ़ा जाता है और दूसरा पिता के शत्रु के द्वारा। अब एक नायक और एक खलनायक दोनों उसका बेटा बनकर पहुँचते हैं। पिता ने एक लडक़ी को गोद ले रखा है। नायक और नायिका मिल जाते हैं। तकरार बड़ी देर चलती है, कुछ गाने-वाने भी गाये जाते हैं, दुश्मन के षडयंत्र को बेटा बेनकाब करता है। क्लायमेक्स में सच सामने आता है। बिछुड़े हुओं का मिलन होता है।

शम्मी कपूर, अमिता नायक-नायिका हैं। फिल्म का टाइटिल गीत, यूँ तो हमने लाख हसीं देखे हैं, अपने जमाने का बड़ा सफल गाना था। इसके अलावा छुपने वाले सामने आ, और दूसरे तीन-चार गीत आज भी सुनने में अच्छे लगते हैं। मजरूह सुल्तानपुरी और ओ.पी. नैयर को गीत-संगीत रचना का सदाबहार रचने का श्रेय इस फिल्म में हैं। फिल्मिस्तान की यह फिल्म नासिर हुसैन ने सहज रोचकता में बनायी है।

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