छबि से किसी इन्सान का आकलन किया जा सकता है, बहुत से लोग कहेंगे किया जा सकता है और बहुत से कहेंगे, नहीं किया जा सकता। सामाजिक जीवन में तो खैर यह अब बड़ा मुश्किल होता जा रहा है, चेहरा कई बार दिल की पहचान होता है तो वही कई बार मुखौटा साबित होता है। टी. प्रकाश राव की फिल्म इज्जत में मोहम्मद रफी साहब ने परदे पर अभिनेता धर्मेन्द्र के जरिए यही फरमाया है, क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छिपी रहे, नकली चेहरा सामने आये, असली सूरत छिपी रहे।
चोट खाये, पछताए लोगों के लिए यह गाना मन की भड़ास निकालने के लिए काफी है। क्रोध और छलावे को कम करने के लिए पर्याप्त है। बात समाज के माध्यम से सिनेमा तक जाती है, प्रश्र यही उठता है कि परदे पर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाने वाले कलाकार क्या वाकई वैसे ही बुरे, मन के काले और कुत्सित होते हैं? दर्शकों के मन में इस तरह के भ्रम खड़े होते हैं। खासकर छोटी उम्र के नासमझ दर्शक बुरे किरदारों के साथ अपना आकलन जोड़ लिया करते हैं और फिर उनका मानना होता है कि यह आदमी सारी जिन्दगी इसी तरह का ही होगा या रहेगा।
नकारात्मक भूमिकाएँ करने वाले बड़े पक्के कलाकारों की हिन्दी सिनेमा में लम्बी परम्परा रही है। कन्हैयालाल हमेशा कुटिल मुनीम के रूप में हीरो के परिवार से लेकर पूरे गाँव वालों से गलत कागज पर अँगूठा लगवाकर उनकी जमीन-जायदाद हड़प कर लेने वाले आदमी के रूप में बदनाम रहे। मदनपुरी से सबको डर लगता रहा कि यह आदमी कभी भी खटका दबाकर बटनदार चाकू निकाल सकता है। जब यह हीरो को नहीं छोड़ता तो हम क्या चीज हैं? कृष्ण निरंजन सिंह यानी के.एन. सिंह कसीनों चलाने वाले, ब्लैक मार्केटिंग करने वाले खलनायक के रूप में हमेशा हीरो को अपने से बांधे रखने वाले बुरे आदमी रहे जिसकी वजह से हीरो अच्छी राह पर चल ही नहीं पाया।
रसूखदार खलनायक के रूप में रहमान का शायद कोई विकल्प न हुआ। रंजीत और प्रेम चोपड़ा की आँखों में हमेशा वासना के डोरे कुत्सित अन्दाज में दिखायी देते थे। प्राण साहब के बारे में तो हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म गुड्डी में जया बच्चन, धर्मेन्द्र से कहती भी हैं कि उस आदमी से घड़ी क्यों ले ली, न जाने उसके मन में क्या होगा? अमजद खान एक जल्लाद खलनायक के रूप में शोले से आये वहीं अमरीश पुरी ने खलनायक किरदारों को एक अलग ही भयाक्रान्त कर देने वाले एहसासों के साथ स्थापित किया।
अनिल शर्मा ने अपनी फिल्म हुकूमत, फरिश्ते, ऐलाने जंग आदि में सदाशिव अमरापुरकर को एक भयानक खलनायक के रूप में पेश किया। दिलचस्प सच्चाई यही है कि ये सभी कलाकार मानवीय और अच्छे दिल के इन्सान रहे हैं जिनकी अपने उन सभी नायकों से खूब दोस्ती रही जिनके साथ परदे पर इन्होंने विश्वासघात किया।
1 टिप्पणी:
is rachna me sach ko bahut achche se rakha hai aapne.
एक टिप्पणी भेजें