इस रविवार 1953 में प्रदर्शित अमिय चक्रवर्ती निर्देशित यादगार फिल्म पतिता की चर्चा विशेष रूप से नैतिक मूल्यों, अन्तरात्मा को झकझोरकर रख देने वाली परिस्थितियाँ और बहुत मर्मस्पर्शी कहानी को अच्छे कलाकारों से निबाहने के निर्देशकीय कौशल को याद करते हुए की जाना प्रासंगिक लगता है। प्रासंगिक या मौजूँ इसलिए क्योंकि ऐसे विषय या ऐसे उद्देश्य अब हमारे सिनेमा में नजर नहीं आते। यह फिल्म देव आनंद, ऊषा किरण, आगा, कृष्णकान्त और ललिता पवार के न भुलाये जा सकने वाले किरदारों के कारण मन में ठहर जाती है।
पतिता एक ऐसी औरत की कहानी है जो गरीबी और मुफलिसी का शिकार है, अपने वृद्ध और अपाहिज पिता के साथ जीवन गुजार रही है। वह भीख मांगती हुई नायक के सामने जाती है, फिल्म का ओपनिंग शॉट यही है और नायक उसे नसीहत देता है, भीख मांगकर जीना अच्छी बात नहीं कुछ काम करो। नायक रईस है, वह अपने मित्र का पता देकर उसकी मदद करता है और काम दिलाता है मगर किराये के घर से बार-बार निकाले जाने की धमकी और अय्याश मकान मालिक की बुरी नजर राधा का नसीब कहीं और ही ले जाती है।
राधा के पिता मर जाते हैं और हादसे का शिकार हुई यह स्त्री अविवाहित माँ का जीवन जी रही है। वह मर जाना चाहती है मगर एक सहृदय आदमी मस्तराम उसके प्राण बचाता है और बहन बनाकर अपने घर ले आता है। बिखरा हुआ जीवन फिर किसी तरह राधा समेटने का जतन करती है। इस बीच उसकी नायक से दोबारा मुलाकात होती है। नायक उसे धोखेबाज समझता है लेकिन वह नायक को सचाई बताती है। एक हादसा और घटता है जब नायिका के हाथ से अय्याश मकान मालिक का खून हो जाता है।
नायक उसको पहले ही बहुत चाहता था, अब विवाह करना चाहता था लेकिन नायक की माँ इसके लिए तैयार नहीं थी। राधा को इन स्थितियों से उबारने के लिए बेटे को बहुत चाहने वाली अपनी माँ के हृदय परिवर्तन के लिए नायक ऐसा कदम उठाता है कि फिर माँ राधा को बहू बनाकर घर लाने को तैयार हो जाती है। वह अदालत में अपनी गवाही से जज को सोचने पर मजबूर कर देती है।
फिल्म सुखान्त है। देव आनंद इस फिल्म में खूबसूरत युवा उम्र में और भी अच्छे लगते हैं। ऊषा किरण हादसे और वेदना को जीने वाली नायिका के रूप में गहरी छाप छोड़ती हैं। मसखरे आगा और ग्रे-शेड की ललिता पवार की भूमिकाएँ याद रह जाने वाली हैं। तलत महमूद, लता मंगेशकर, हेमन्त कुमार के गानों में जीवन, दर्शन और प्रेम अपनी श्रेष्ठताओं के साथ अहसास होते हैं, अंधे जहाँ के, है सबसे मधुर गीत, किसी ने अपना बना के मुझको मुस्कुराना सिखा दिया, मिट्टी से खेलते हो बार-बार किसलिए और याद किया दिल ने कहाँ हो तुम, गानों को शंकर-जयकिशन ने अपनी अमर संगीत रचना से अविस्मरणीय बना दिया है।
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