रविवार, 19 जून 2011

सदाबहार महानायक की आत्मकथा




कुछ फिल्मी गॉसिप छापने वाले अखबारों में से एक किसी अखबार में एक खबर ने पिछले दिनों ध्यान आकृष्ट किया कि सदाबहार महानायक धर्मेन्द्र अपनी आत्मकथा लिखने जा रहे हैं। वास्तव में मुम्बई में फिल्मी सितारों की सारी बातचीत-व्यवहार, सोचना-समझना, उठना-बैठना और कहना-सुनना सभी अंग्रेजी में ही हुआ करता है।

दुनिया के बड़े-बड़े व्यापारी प्रकाशक आत्मकथा को बायोग्राफी कहते हैं और उसी समझ, आकलन और दृष्टि के साथ प्रकाशित करते हैं। देव आनंद, प्राण, अमरीश पुरी आदि की अंग्रेजी में ही कहें तो सो-काल्ड बायोग्राफी पब्लिश हो चुकी है। बाद में बड़ी उपेक्षा और अरुचि के साथ इसका हिन्दी अनुवाद जिसे लगभग समझरहित और हिन्दी के व्याकरण के प्रति पूरी अज्ञानता बरतते हुए प्रकाशित किया गया, वह भी कहीं-कहीं एकाध बड़ी दुकानों में वो भी महानगरों की, रखा दिखायी देता है।

धर्मेन्द्र ने सारी पिछली पहल से अलग यह मन्तव्य जाहिर किया है कि उनकी आत्मकथा उर्दू में प्रकाशित होगी। सिनेमा वाले जानते हैं, और यह लगभग शुरू से ही रहा है और शुरू में कई कलाकारों के साथ रहा है कि उनके संवाद उर्दू में ही लिखकर दिए जाते थे। बरसों-बरस यह एक परम्परा रही है, जिसके कारण ही सिनेमा में संवाद की अपनी शुद्धता और शब्दों तथा अक्षरों तक की अपनी नजाकत को कलाकारों ने बहुत समझकर परदे पर उच्चारित किया।

बाद में अंग्रेजी आने के बाद संवादों को जब उस तरह से रोमन में लिखकर देने और निर्देशक द्वारा कलाकार को सारा दृश्य अंग्रेजी में समझाकर शॉट लेने की परिपाटी चल पड़ी तो फिर ठण्डा, थण्डा हो गया, राठौड़ भी राथौड़ हो गये और सब्र का फल हो या खाने वाला, नुक्ता लगाकर बोला जाने लगा। भाषा का भोथरा हो जाना इस समय बेसुध समाज और पीढ़ी के लिए कोई विषय नहीं है इसलिए सब धक ही रहा है।

अच्छा लगा कि धर्मेन्द्र यदि आत्मकथा लिखने-प्रकाशित कराने की तैयारी करेंगे तो उसकी भाषा उर्दू होगी। पिछले करीब सात-आठ वर्षों से धर्मेन्द्र शायरी कर रहे हैं। उनके पास बैठने के शायराना अनुभवों का स्मरण करना अपने आपमें रोमांचित होना है। उनकी पंक्तियाँ जिन्दगी के तजुरबों का अनूठा दस्तावेज हैं। सिनेमा में पचास साल का अनवरत सफर करते हुए लगातार काम करने वाले धर्मेन्द्र अपनी जगह, अपने प्रशंसकों और अपने अन्तस को एक-दूसरे से कभी अलग नहीं करते।

धर्मेन्द्र सचमुच अपने आपमें एक निश्छल और निष्कपट इन्सान और कलाकार हैं, जो हर दौर के प्रिय होते हैं। आज भी उनकी ऊर्जा, जिजीविषा और हौसले पर वही बहादुरी और मर्दानापन दिखायी देता है, जिसके लिए वे ही-मैन के रूप में अपने सदाबहार विशेषण के साथ विख्यात हैं।

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