आखिर दर्शक अपने मन का सिनेमा ही चुनता है। इसके लिए वह किसी की दृष्टि, ज्ञान या दर्शन की नहीं मानता। यह बात और है कि दर्शक के मन का सिनेमा बड़ी देर में आया करता है। इसके लिए उसे बहुत इन्तजार करना होता है। धोखे या भ्रम में वह नुकसान भी उठाता है जब उसकी जेब का पैसा जाता है और मन का मनोरंजन नहीं मिल पाता। ऐसे में छला गया दर्शक पच्चीस दूसरों को सावधान करने का काम पहले करता है। पिछले काफी समय से सिनेमा का बाजार जिस तरह की दुर्दशा को प्राप्त हुआ है उसके पीछे यही वजहें हैं।
गजनी, थ्री ईडियट्स, राजनीति या अबके आयी दबंग की बात अलग है, ऐसी फिल्में उसको बमुश्किल मिल पाती हैं। आधुनिक जिन्दगी जीने वालों को उनकी ही तरह की जिन्दगी को आधार बनाकर बनायी गयी फिल्में खुद उनकी ही चाहत का हिस्सा नहीं होतीं। फिल्म निर्माण के बड़े घराने काफी समय से निरर्थक फिल्में बना रहे हैं। चटख रंग-रोगन और सितारों की लच्छेदार बातें अब बेहद आम हो गयी हैं, दर्शक इसमें अपना मनोरंजन नहीं खोज पाता। वह तत्काल खारिज करता है। यह उसके मन की होती है। बिगड़ा दर्शक बहुत नुकसान भी कराता है, यह बात, अपनी खराब फिल्मों का बुरा हश्र देखकर जानने वाले भी दर्शक की इच्छाओं या अपेक्षाओं को समझ नहीं पाते।
दबंग की सफलता ने ऊँघाए फिल्मी माहौल को चौंक कर उठाने का काम कर दिया है। प्रदर्शन से तीन दिनों में सैंतालीस करोड़ का धन संग्रह करने वाली और लगभग चालीस करोड़ की लागत में बनने वाली इस फिल्म ने दर्शकों अपना नाता सीधे स्थापित करके सलमान के स्पर्धियों को भी अपना दम दिखाया है और आलोचकों को भी। यह फिल्म यह भी प्रमाणित करती है कि सलमान अपनी तरह के अकेले नायक हैं, जो एक परिपक्व उम्र में मुकम्मल संजीदगी के साथ-साथ अभिनय को अपनी क्षमताओं के साथ नियंत्रित करना जान गये हैं। जिस तरह दर्शक परदे पर सलमान को देखकर आनंदित होता है उसी तरह सलमान का अभिनय भी दर्शक से सीधे ऊर्जा और आत्मविश्वास ग्रहण करता है।
पिछले कुछ वर्षों में सलमान की बेचैनी बिल्कुल खत्म हो गयी है। वे बहुत धीरज से पेश आते हैं, बात करते हैं। उनकी करुणा और संवेदना जरा भी बनावटी नहीं है। एक भावुक इन्सान के रूप में सलमान दिल खोल के लुटने और लुटाने में विश्वास करते हैं। दबंग की सफलता उनके कैरियर को जिस शिखर पर स्थापित करती है, वहाँ वे सर्वप्रिय छबि के सितारे के रूप में दिखायी देते हैं। हमें दरअसल अभिनव सिंह कश्यप नाम के आदमी की भी पीठ ठोंकनी चाहिए, जो इस करिश्मे के पीछे कहीं विनम्रतापूर्वक चुपचाप खड़ा है, नजर ही नहीं आता। वह भी खासा दबंग है।
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