हिन्दी दिवस पर हिन्दी के प्रति नकली श्रद्धासुमन अर्पित करने की औपचारिकता खूब चलती है। हिन्दी का पिछड़ापन, उसका लुटापिटा होना और उसकी दुर्दशा के लिए तमामों को जिम्मेदार भी ठहराया जाता है। लेकिन सभी के व्यवहार और चेतना से हिन्दी का संस्कार, सम्मान और फिक्र समाप्त हो चली है। हिन्दी अखबारों में अंग्रेजी का डिओड्रंट रोज ही महकता है, हिन्दी टेलीविजन चैनलों पर भी समाचार से एंकर तक, धारावाहिक से मिमिक्री या सर्कस तक सभी जगह अंग्रेजी का परचम लहरा रहा है। हिन्दी सिनेमा का तो कहना ही क्या, हिन्दी ही नहीं है।
पिछले दस साल से कलाकारों की पीढिय़ाँ अंग्रेजी में ही बात करते हुए सहज महसूस करती हैं। अंग्रेजी पत्रिका, पत्रकार और सम्पादक को अपेक्षाकृत उनमें ज्यादा तवज्जो है। तमाम निर्देशक, अभिनेता और अभिनेत्री दो-चार शब्द हिन्दी में बोलकर अपने आपको इतना ऊबड़-खाबड़ महसूस करते हैं कि तुरन्त अंग्रेजी में बोलना शुरू कर अपने आपको जैसे पटरी पर सहजतापूर्वक चलने वाली रेल की तरह राहत की साँस लेते हैं। फिल्मों के सेट पर सारा बर्ताव अंग्रेजी में होता है। निर्देशक को जो चाहिए वो सितारे को अंग्रेजी में बताता है, अभिनेता अपने भ्रम का समाधान अंग्रेजी मे पूछ कर करता है। निर्देशक को जो चाहिए यदि वो दृश्य में निकलकर नहीं आ रहा तो झल्लाहट और अपशब्दों का आदान-प्रदान भी अंग्रेजी में ही किया जाता है। अंग्रेजी में गुस्सा किया जाता है, अंग्रेजी में प्यार किया जाता है और अब जब फिल्मों के नाम हिन्दी में सूझना बन्द हो गये तो वो भी दो-चार सालों से अंग्रेजी में ही रखे जाते हैं।
अपने उद्गार, अपनी अभिव्यक्तियाँ और दर्शकों तक जोडऩे वाला सीधा माध्यम पूरा का पूरा बदल गया है। कलाकारों के संवाद, गाने, भावुक और जज्बाती दृश्य, रूमानी प्रसंगों आदि में अंग्रेजी सिर चढक़र नाच रही है। भारत सरकार के राजभाषा विभाग, हिन्दी में काम करने वाले संस्थान, बैंक आदि सब दिन, सप्ताह, पखवाड़ा और मास मनाकर हिन्दी का श्राद्ध सरीखा करके अगले साल तक के लिए मुक्त हो जाते हैं और ढर्रा वही कायम रहता है। हिन्दी के लिए जिस तरह धीरे-धीरे आदर और स्थान कम होता जा रहा है, उसको खतरे का संकेत कहने के बजाय दुखद स्थिति और संकेत कहा जाना चाहिए।
पत्रकारिता में हमारे मार्गदर्शक ने वर्षों पहले अपने अखबार के दफ्तर में ऐसी ही किसी चर्चा में एक बार, एक गाना याद दिलाया था और कहा था कि इस गाने में पूर्णत: हिन्दी और शुद्धता है, यह गाना दिलचस्प भी है और लोकप्रिय भी हुआ था। आपको याद कराऊँ, प्रिये प्राणेश्वरी हृदयेश्वरी, यदि आप हमें आदेश करें तो प्रेम का हम श्रीगणेश करें। किशोर कुमार का गाया यह गाना फिल्म हम तुम और वह में विनोद खन्ना पर फिल्माया गया था।
1 टिप्पणी:
आपने सच्ची बात लिखी. भारतेंदु का भारत दुर्दशा याद आता है. भाषा के संदर्भ में उस युग से आज के युग तक ज्यादा फर्क नहीं पड़ा है. अलबत्ता तब भाषा का स्वप्न सच होने की उम्मीद बाकी थी, लेकिन आज ऐसा कोई स्वप्न दिखायी नहीं देता.
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