अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि मेट्रो सम्बन्धी पहल को लेकर उनके विचारों को मीडिया ने अपने ढंग से प्रकाशित कर उनका पक्ष प्रभावित किया है। यह शायद पहली बार नहीं हुआ है कि मीडिया को लेकर महानायक ने अपनी शिकायत दर्ज करायी हो। दरअसल पचास की उम्र में सन्यास लेने और उसके पाँच साल बाद वापस आने के दरम्यान ही उनके और मीडिया के बीच रिश्तों की खट्टा-मीठी शुरू हो गयी थी। उससे पहले जब वे बड़ी दुर्घटना का शिकार हुए थे, उससे पहले उन्होंने मीडिया से खासा परहेज कर रखा था मगर बीमारी के समय जिस तरह मीडिया ने अपनी जिम्मेदार भूमिका का निर्वाह किया और उनके प्रशंसकों तक पल-पल की खबर दी, उससे महानायक का हृदय पिघला और एक बार फिर संवाद शुरू हुआ।
सन्यास अन्तराल के बीच के पाँच बरसों में बेशक कुछ खास नहीं घटा लेकिन मृत्युदाता से जिस तरह उनका पुनर्आगमन हुआ, उस स्थूल वापसी पर फिर मीडिया ने अपना निष्पक्ष रुख रखा, फिर दिक्कतें हुईं। हालाँकि फिर कुछ समय बाद जब वे नायक के सम्मोहन से मुक्त हुए और मोहब्बतें से अपना एक नया सिलसिला शुरू किया तो उनके काम की प्रशंसा भी हुई और रवि चोपड़ा की बागवान पर जैसी समीक्षाएँ और अमिताभ के काम का मूल्याँकन मीडिया में हुआ, उससे वे फिर एक बार अपनी खिन्नता से बाहर आए और सदाशयी हुए।
अभी फिर तकरीकन कुछ वर्षों से उनका संवाद मीडिया के साथ कम हो रहा है। उनके पास पर्याप्त समय अब रहता है मगर, जाहिर है, इसके लिए वे स्वतंत्र भी हैं, कि वे अपने समय का कैसे सदुपयोग करें, वे ब्लॉग लिख रहे हैं और ट्विटर पर अपने विचार व्यक्त किया करते हैं। यहाँ फिर उनके और मीडिया के बीच सीधी और स्वस्थ बातचीत की मुकम्मल दूरी बनी हुई है।
दिलचस्प यह है कि मीडिया को उनमें खूब रुचि है। अखबारों के पन्ने, हर दिन अमिताभ बच्चन के ब्लॉग और ट्विटर के मुखारविन्द से अपनी सार्थकता सिद्ध करते हैं और सीधी बातचीत की स्थितियाँ नहीं सी है। ऐसे में कुछ टूटता या मुड़ता है तो उसको तोड़ा-मरोड़ा कहकर शिकायत होना स्वाभाविक भी है। भारतीय सिनेमा में बच्चन से भी अधिक प्रतिष्ठा रखने वाले रजनीकान्त या मोहनलाल को शायद इस तरह की समस्या इसलिए नहीं है क्योंकि उनके और मीडिया के बीच दूरी नहीं है।
आमिर खान ने चार कदम आगे आकर अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता को प्रमाणित करके अपनी छबि को समृद्ध किया है। पता नहीं, महानायक क्यों उदारता और संवाद की सहजता से अपने आपको दूर रखते हैं?
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