अजनबियों की इस चहल-पहल में
ढूँढती हैं आँखें
एक तुम्हारा चेहरा
फिक्रमंद सा
बाट जोहते हुए
न जाने किसकी
मेरी शायद
बड़ी रात हो गई है
इस शहर में
और मैं खड़ा
अपने आसपास के मेलों में
अकेला, एकाकी
बहुत से लोग दीखते हैं
दूर से आते हुए
सिवा तुम्हारे
एक दिन तुम भी आना
बड़ी पीछे से
इस भीड़ को हटाते हुए
मेरी तरफ
मेरी ओर
मेरे पास
तुम बखूबी जानती हो
मेरे मौन निमंत्रण
बड़े दिनों जो धीमी साँस लेते रहे
तुम्हें देखते हुए
पलकें झपकाए बिना
इस भरोसे कि
नयन तुम्हारे कभी न कभी
करेंगे ही आचमन
ढाई बूँदों का
हूँ खड़ा मैं
इस तरफ की भीड़ में भले
उस तरफ की भीड़ को निहारते हुए
चीन्ह लूँगा मैं इधर से चेहरा अपना
भूल न जाना तुम भी उधर से
आ रही हो इस तरफ तो
चेहरा अपना.....
4 टिप्पणियां:
सुंदर अभिव्यक्ति , बधाई
bahut sunder.
धन्यवाद सुनील जी।
धन्यवाद शशि जी।
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