पीपली लाइव में नत्था की भूमिका निभाने वाले छत्तीसगढ़ी कलाकार ओंकारदास माणिकपुरी को फिल्म के साथ अपनी लोकप्रियता की कीमत शायद चुकाना पड़ रही है। फिल्म मेें एक शोषित और मुसीबत में पड़े आदमी को जीते हुए व्यवहार में अब उसके साथ मीडिया नत्था जैसा ही सलूक करने को लालायित दीख रहा है। पिछले दिनों दो अलग-अलग तरह की खबरों और उसी तरह की और भी पाँच-सात खबरों में नत्था की जिन्दगी और आर्थिक हालातों पर लिखा गया है। ओंकारदास माणिकपुरी ने पीपली लाइव में काम करने का अपना मानदेय दो लाख रुपए भी सभी को बता ही दिया गया है। यह भी लगे हाथ बता दिया है कि उसका मकान कच्चा है। उसकी मरम्मत कराना है। यह काम इतने रुपयों में नहीं हो सकता।
बात यह है कि फिल्म में जो किरदार नत्था ने निभाया है, वह बहुत अलग तरह का है। एक ऐसा भाई है जो बहुत भोला है और पत्नी-बाल-बच्चेदार होने के बावजूद बड़ी हद तक अपने भाई का ही अधीनस्थ है। पूरी फिल्म में उसके संवाद बमुश्किल पाँच-छ: बार होंगे। नत्था अपने बड़े भाई के साथ ही रहता है, अपने डर, चिन्ताएँ, अनिश्चतताएँ अपने भाई से ही व्यक्त करता है। अनुषा रिजवी ने इस किरदार के लिए उसका चयन बहुत ही परफेक्शन के साथ किया। ओंकारदास को ज्यादा बात करना नहीं आता। लोकमंच का रंग अपनी आंचलिकता में बड़ा मुकम्मल और प्रभावशाली होता है मगर उसका प्रभाव गाँव की दस-पाँच हजार की रात से सुबह तक जमने वाली भीड़ में दिखायी देता है।
अनुषा रिजवी ने एक सधे हुए निर्देशक की तरह ओंकारदास से किरदार को उसी तरह से जीने के लिए कहा जैसा वह खुद है। रोल की डिमाण्ड के आधार को उसने भी समझा और वैसा ही अदा किया। ओंकारदास के जीवन और संघर्ष की अपनी स्थितियाँ है, जिससे वह जूझता रहेगा मगर उसे अपनी विडम्बनाओं को इस तरह प्रस्तुत नहीं करना चाहिए जिससे उसकी वह प्रतिष्ठा प्रभावित हो, जो पीपली लाइव से उसे हासिल हुई है। उसे पीपली लाइव के मानदेय से अपनी परिस्थितियों को नहीं तौलना चाहिए। व्यवहारिकी में ऐसे भोले कलाकारों के कहे का ऐसा स्वर प्रतीत होता है, जो नाहक सनसनी खड़ी करता है।
पहली फिल्म से बनी प्रतिष्ठा को और आगे ले जाना है ओंकारदास को। यह उसका कोई एक और अन्तिम काम नहीं है। उसे सजग रहना चाहिए, सवालों से और तौल कर देना चाहिए जवाबों को। हो सकता है ऐसी खबरों से उसे अनुषा या आमिर खान से चार पैसे और मिल जाएँ मगर ओंकारदास इन्हीं वजहों से कहीं अपना वजन कम न कर ले।
4 टिप्पणियां:
मर्म की बात कही आपने. ओमपुरी जैसे कलाकार के बारे में पढ़ना चाहिये ओंकारदास को. अच्छी पोस्ट.
बेहतरीन सहज अभिनय किया है ओंकार ने मगर इतना कम मानदेय ?
आभार आत्माराम जी। मुझे इस भले आदमी के नत्था जैसे हश्र के अंदेशे को लेकर चिंता होती है।
अरविंद जी, ओंकारदास को मिला मानदेय कम और पहली फिल्म के लिहाज से ठीक है।
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