जाने कैसे बाँध लिए
कुछ सुहाने मौसम
अपनी जुल्फों में तुमने
उन्हें ढूँढ़ते हुए
हम बड़ी दूर गए
खो गए.....
उस बियाबान में भी
रोके रही तुम्हारे होने की
उम्मीद हमको
हम तुम्हारी महक
पहचानकर
ठहर गए
सो गए.....
उस ज़मीं की नरम
अनुभूतियों को भला
भूलें कैसे
पल भर बैठ गए
मन भर छुआ और
भीतर के
मुट्ठी भर सपने
बो गए.....
4 टिप्पणियां:
बहुत बेहतरीन!
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।
काव्य प्रयोजन (भाग-७)कला कला के लिए, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
आपका आभारी हूँ उड़नतश्तरी जी।
धन्यवाद राजभाषा हिन्दी।
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