बुधवार, 8 सितंबर 2010

मुट्ठी भर सपने

जाने कैसे बाँध लिए
कुछ सुहाने मौसम
अपनी जुल्फों में तुमने
उन्हें ढूँढ़ते हुए
हम बड़ी दूर गए
खो गए.....

उस बियाबान में भी
रोके रही तुम्हारे होने की
उम्मीद हमको
हम तुम्हारी महक
पहचानकर
ठहर गए
सो गए.....

उस ज़मीं की नरम
अनुभूतियों को भला
भूलें कैसे
पल भर बैठ गए
मन भर छुआ और
भीतर के
मुट्ठी भर सपने
बो गए.....

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन!

राजभाषा हिंदी ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है।

काव्य प्रयोजन (भाग-७)कला कला के लिए, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें

सुनील मिश्र ने कहा…

आपका आभारी हूँ उड़नतश्तरी जी।

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद राजभाषा हिन्दी।