हिन्दी सिनेमा का आज अपनी तरह की सीमाओं में बँधा है। याद रह जाने वाले किरदार अब दिखायी नहीं देते। जहाँ तक कलाकारों की अस्मिता का सवाल है, मुख्य कलाकार, नायक-नायिका को ही हमेशा अपनी क्षणभंगुरता का खतरा सताता है, चरित्र कलाकारों के लिए भला कोई कहाँ जगह निकालेगा? अब फिल्मों में घरेलू नौकर के रूप में ऐसा कोई बुजुर्ग दिखायी नहीं देता जो अकेले नायक की पिता की तरह चिन्ता करता हो, उसके देर से घर आने, खान-पान और आराम पर ध्यान न दे पाने के कारण उसको टोकता हो, नाराज होता हो। हमारे यहाँ अब परदे पर ऐसे भद्र नायक भी दिखायी नहीं देते जो नौकर को काका, बाबा या चाचा कहकर पुकारें।
आजकल की फिल्मों के नौकर और रसोइए नायक को फ्लर्ट करने के तरीके सिखाते हैं और उनकी इश्क फरमानी में अजीब सी ही भूमिका अदा करते हैं। स्वर्गीय बिमल राय की अविस्मरणीय फिल्म देवदास में नायक का घरेलू नौकर जिसकी भूमिका नजीर हुसैन ने निभायी थी, देवदास को बेटे की तरह चाहता है, प्रेम में उसकी दुर्दशा पर जार-जार आँसू बहाता है। इसी फिल्म का एक प्रभावी दृश्य है जब चन्द्रमुखी के यहाँ देवदास शराब के नशे में पड़ा है और नौकर उससे मिलने वहाँ जाता है उस समय दरवाजे से उसके अन्दर आते हुए दृश्य में नौकर और चन्द्रमुखी का आमना-सामना होता है, उस समय नौकर के चेहरे में चन्द्रमुखी के प्रति नफरत और देवदास की तिल-तिल मरती अवस्था का दुख बड़े सशक्त प्रभाव के साथ दिखायी देता है।
चरित्र कलाकार के रूप में अपने समय में मोतीलाल, रहमान, ओमप्रकाश, राज मेहरा, गजानन जागीरदार, डॉ. श्रीराम लागू, प्राण, ओम शिवपुरी, उत्पल दत्त, अशोक कुमार, अवतार कृष्ण हंगल, दुलारी, लीला मिश्रा, ललिता पवार आदि ऐसे नाम हैं जिनका फिल्म में होना बड़ा मायने रखता था। प्रख्यात फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी की कई फिल्मों में ललिता पवार को सहृदय स्त्री की भूमिकाएँ मिली थीं, तत्काल हमें आनंद और अनाड़ी याद आती है जबकि उनकी आम छबि एक क्रूर और नकारात्मक स्त्री के रूप में थी।
प्रकाश मेहरा निर्देशित शराबी फिल्म में ओमप्रकाश का चरित्र आज भी याद आता है जो अपने मालिक के बेटे को पिता से बढक़र स्नेह देता है। चरित्र अभिनेताओं ने एक जमाने में सचमुच यादगार फिल्मों में चरित्र गढऩे का असाधारण काम किया है। ऐसी बहुत सी फिल्में हैं जो हम उन किरदारों के माध्यम से याद करते हैं।
ऐसे अनेक किरदार भुलाए नहीं जाते जो फिल्म के कथ्य, विषय और दृश्यों में अपनी उपस्थिति से अपने मायने रेखांकित करते थे। आज उस मजबूती के कलाकार भी दिखायी नहीं देते और न ही ऐसे कलाकारों के लिए भूमिकाएँ ही लिखी जाती हैं।
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