जो दिए ख्वाब आपने
वही हम ले के चले
सच कहें आपसे हम
ख्वाब कुछ और न पले
बिरवे जो रोपे थे मिलकर
उन्हीं को सहेजा हमने
दिनों में फूल जो खिला
आप ही को भेजा हमने
आप ही भूल गए
फूल की प्यारी सी महक
रंग भी याद न रहा
न वो बिरवे की चहक
वो बगीचा है कहाँ
अपनी क्यारी थी जहाँ
काँटे बिखरे हैं पड़े
अपनी फुलवारी थी जहाँ
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