मन ही मन सोचते रहे कब से
कह देना है मन की बात तुमसे
जाने क्या-क्या तय करके रखा है
सब बताएँगे होगी जब मुलाक़ात तुमसे
इतना करना कि धीरज से सुन लेना
जब व्यक्त करेंगे अपने जज़्बात तुमसे
मुस्कुराना न सही क्रोध मगर न करना
सह लेना हमारे कहे हालात तुमसे
जाने क्या होगा उन ढाई अक्षरों का
टूटकर बिखर जायेंगे जो नगमात तुमसे
1 टिप्पणी:
धन्यवाद उड़नतश्तरी जी।
एक टिप्पणी भेजें