शनिवार, 4 सितंबर 2010

तुमसे

मन ही मन सोचते रहे कब से
कह देना है मन की बात तुमसे

जाने क्या-क्या तय करके रखा है
सब बताएँगे होगी जब मुलाक़ात तुमसे

इतना करना कि धीरज से सुन लेना
जब व्यक्त करेंगे अपने जज़्बात तुमसे

मुस्कुराना न सही क्रोध मगर न करना
सह लेना हमारे कहे हालात तुमसे

जाने क्या होगा उन ढाई अक्षरों का
टूटकर बिखर जायेंगे जो नगमात तुमसे

1 टिप्पणी:

सुनील मिश्र ने कहा…

धन्यवाद उड़नतश्तरी जी।