अमिताभ बच्चन को इस बार पा फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा हुई है। अब तक तीन बार हो गये हैं उनको अभिनय के लिए ऐसी मान्यता पाने के। जाहिर है, महानायक खुश हैं मगर बात वही है, अभिव्यक्ति अपने ब्लॉग के मार्फत ही। फिर उस ब्लॉग से अखबारों ने खबर बनायी और पाठकों तक पहुँचायी जो जाहिर है उनके दर्शक भी हैं। अमिताभ बच्चन की हर बात या तो ट्विटर के जरिए आती है या ब्लॉग के जरिए। सीधी बात की स्थितियाँ अब लगभग नहीं के बराबर रह गयी हैं। माध्यम सीधे अमिताभ से संवाद नहीं कर पाते या अमिताभ माध्यमों से सीधे संवाद नहीं कर पाते, जो भी हो कई वर्षों से नाक घुमाकर ही पकड़े जाने का चलन इन मायनों में होकर रह गया है।
अमिताभ बच्चन ऐसी शख्सियत हैं, हमेशा ही, कि उनका फोटो, उनसे जुड़ी खबर हमेशा हर माध्यम का आकर्षण बनती है। इस आकर्षण की तलाश भी माध्यमों को हमेशा रहती है लेकिन रास्ता सीधा नहीं है, घूमकर जाता है, खबरें और जानकारियाँ इसी वजह से लम्बे रास्ते से होकर हम तक आती हैं। देश अखबार में पढऩे के पहले जान चुका होता है, अमिताभ के ब्लॉग और ट्वीट के जरिए कि वे क्या कह रहे हैं। अगले दिन सुबह सभी अखबारों ने इन जगहों से उधार लिया छापा होता है। इस बात पर जरा गौर किया जाना चाहिए। महानायक यदि अखबारों की अपरिहार्यता है तो जीवन्त संवाद स्थापित करने के रास्ते बन्द नहीं होने देना चाहिए।
अमिताभ बच्चन को जब कभी भी ऐसे किरदार मिले हैं जिनमें गहरे उतरने की चुनौती आसान नहीं होती, उसमें वे अपना सब कुछ लगा देते हैं। जिस तरह का किरदार उन्होंने संजय लीला भंसाली की फिल्म ब्लैक में निभाया था, जिस तरह का किरदार उन्होंने बाल्कि की फिल्म पा में निभाया है, उस किरदार में उतरना बेहद तनाव से भरा होता है। व्यक्तिश: मुझे लगता है कि ब्लैक का उनका चरित्र काफी जटिल था। पूरे मानस को झकझोरकर रख देने वाला। उसे जीकर निश्चय ही श्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार उनको ही मिलना था। उस काल में जाहिर है यह पुरस्कार किसी और को मिल भी नहीं सकता था।
पा का किरदार जटिल होने के बावजूद दिलचस्प है। इस फिल्म का ऑरो, अपने मस्तिष्क का इतना वजन सम्हालकर, जिन्दगी को संक्षिप्त और सीमित आवृत्ति में जीते हुए भी निराश नहीं है। जीवन को इतने संक्षेप में, इतनी जिजीविषा के साथ जीना ही पा के ऑरो की खासियत है। अमिताभ बच्चन सचमुच ऑरो को जीते हुए अपनी लोकप्रिय छबि में जरा भी पहचाने नहीं जाते।
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
समझ का फेर, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वरूप की लघुकथा, पधारें
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